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________________ [२.५] वीतरागता १८३ प्रश्नकर्ता : अर्थात् पूनम वाले में इससे भी ज्यादा प्रेम होता है ? दादाश्री : पूनम वाले का प्रेम ही वास्तविक प्रेम है! ये चौदस वाले में किसी जगह पर कमी रह जाती है। पूनम वाले का प्रेम ही वास्तविक प्रेम है। प्रश्नकर्ता : संपूर्ण वीतरागता हो और प्रेम रहित हों, ऐसा तो हो ही नहीं सकता न? दादाश्री : प्रेम के बिना तो हो ही नहीं सकते वे! प्रश्नकर्ता : तो दादा! चौदस और पूनम में इतना फर्क आ जाता है? इतना भेद, ऐसा? दादाश्री : बहुत अंतर है ! यह तो हमें पूनम जैसा लगता है लेकिन बहुत अंतर है! हमारे हाथ में है ही क्या? जबकि उनके, तीर्थंकरों के हाथ में तो सभी कुछ है ! हमारे हाथ में क्या है? फिर भी हमें पूनम जितना संतोष रहता है! हमारी शक्ति, खुद के लिए इतनी शक्ति काम करती है कि हमें लगता है कि जैसे पूनम हो चुकी है!
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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