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प्रज्ञा किसे सावधान करती है ? प्रतिष्ठित आत्मा के अहंकार वाले भाग को। उस अहंकार को जो मुक्त होने के प्रयत्न में है।
जिससे भूल होती है उसे प्रज्ञा सावधान करती है लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए, ऐसा प्रतिभाव किसका है ? इसमें प्रकाश प्रज्ञा का है और इस प्रकाश में जो चित्तवृत्ति शुद्ध हो चुकी है, वह प्रतिभाव देती है ।
प्रज्ञा में से उत्पन्न होने वाले आनंद को कौन भोगता है ? उसे रिलेटिव अहंकार भोगता है । रियल तो हमेशा आनंद में ही है न !
जो वेदता है, वह अहंकार है और जो जानता है वह प्रज्ञा है । वेदक में एकाकार होने से दुःख है और ज्ञायक में रहा जाए तो दुःख नहीं रहता।
ज्ञान मिलने के बाद वाणी का उदय होता है और उस उदय के जागृत होने के बाद यदि आपको बोलने न दिया जाए तब प्रज्ञा परिषह उत्पन्न होता है अथवा सामने वाले को समझाने पर भी यदि वह न समझे तब भी आपको प्रज्ञा परिषह उत्पन्न होता है । किसी से गलती हो और उसे खुद का ज्ञान बताना हो लेकिन उसे अवसर नहीं मिले तब भी अंदर प्रज्ञा परिषह उत्पन्न होता है। ‘कब कह दूँ, कब कह दूँ', वह प्रज्ञा परिषह है।
सूझ और प्रज्ञा में क्या फर्क है ? सूझ प्रज्ञा की तरफ ले जाती है । अज्ञान दशा में सूझ ही काम करती है। सूझ, वह प्रज्ञा नहीं है।
इस अक्रम विज्ञान को किससे देखा है ? प्रज्ञा से ।
अज्ञान और अज्ञा में क्या फर्क है ? अज्ञान, वह एक प्रकार का ज्ञान है और अज्ञा, वह किसी भी प्रकार का ज्ञान नहीं है । अज्ञा सिर्फ फायदा-नुकसान ही देखती है हर एक चीज़ में । अज्ञान - ज्ञान अर्थात् सांसारिक ज्ञान। अज्ञान प्राप्ति के लिए अज्ञा उत्पन्न हुई और ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रज्ञा उत्पन्न हुई है ! अज्ञान, वह विशेष ज्ञान है । वह गलत नहीं है लेकिन वह दुःखदाई है ।
रियल - रिलेटिव को अलग कौन रखता है ? प्रज्ञा । प्रज्ञा, रिलेटिवरियल है। उसका काम पूरा हो जाने पर प्रज्ञा मूल जगह पर आ जाती है। उसके बाद आत्मा में मिल जाती है । रियल तो अविनाशी होता है।
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