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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : द्वेष में से राग, बात समझ में आती है लेकिन राग में से द्वेष समझ में नहीं आ रहा।
दादाश्री : क्या समझ में आया 'द्वेष में से राग' में ?
प्रश्नकर्ता : आपने ऐसा कहा था कि मुझे इनका चेहरा भी नहीं देखना है और फिर वही पुत्र के रूप में पैदा होता है।
दादाश्री : तब चूमता रहता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन इसका अर्थ यही हुआ न कि द्वेष में से राग उत्पन्न हुआ?
दादाश्री : दोनों आमने-सामने ही हैं। राग, द्वेष को उत्पन्न करता है और द्वेष, राग को उत्पन्न करता है। वीतरागों को ये स्पर्श नहीं करते।
प्रश्नकर्ता : राग में से द्वेष कैसे उत्पन्न होता है ? वह ज़रा समझाइए।
दादाश्री : आपको बहुत राग हो लेकिन फिर भी जब उसकी अति हो जाती है तब द्वेष होने लगता है।
प्रश्नकर्ता : 'अति होने से द्वेष होता है' यह एक सिद्धांत हुआ लेकिन उस सिद्धांत को उदाहरण देकर समझाइए न।
दादाश्री : रोज़ घर में कलह है, उसका कारण यही है। उसका कारण राग है। उसकी जब अति हो जाती है तब द्वेष होता है। राग करने के परिणाम स्वरूप हर रोज़ यह द्वेष होता है।
प्रश्नकर्ता : एक स्त्री को अपने पति के प्रति बहुत ही राग हो तो फिर उनके बीच तकरार होगी?
दादाश्री : हाँ, फिर यदि अगर वह कभी कहीं बाहर जाए और नहीं आ पाए तो चिढ़ती रहेगी। वीतराग को कुछ भी नहीं होता। राग वालों के बीच झगड़े होते ही रहते हैं।