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________________ ११२ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) वह तो ज्ञानी भी कर सकते हैं। अहंकार की ज़रूरत नहीं है, उदासीन होने के लिए। जबकि उपेक्षा में तो अहंकार की ज़रूरत है ही। उपेक्षा से आगे है उदासीनता प्रश्नकर्ता : उदासीनता और आलस्य, इन दोनों के बीच किस तरह से भेदांकन किया जाए? गहने पहनने में आलस्य आता है क्योंकि बैंक में से लाने पड़ते हैं, यह करना पड़ता है, तो इन दोनों के बीच के भेद को कैसे परखें? दादाश्री : आप बच्चों को क्या सिखाते हो? आप बच्चे को यह कैसे बताते हो कि वह आलसी है या उदासीन हो गया है ? उदासीन व्यक्ति को अगर आलसी कहा जाए तो बहुत बड़ा गुनाह है। उदासीनता तो वीतराग होने से पहले की दशा है। वह साधारण जन समाज की बात नहीं है। अतः आप जो कह रहे हो वह सब प्रमाद है, आलस्य ही है। उदासीनता नहीं आई है। उदासीनता कैसे आएगी? इतने बड़े अहमदाबाद शहर में उदासीनता आती होगी? अगर सभी चीजें मिल जाएँ तो? आपको किस वजह से लगता है कि उदासीनता है? प्रश्नकर्ता : घूमने-फिरने की, पहनने-ओढ़ने की, ये सब जो हैं, उसे ऐसा लगता है कि ये सारी तकलीफें क्यों उठानी तो उसमें मेरा प्रमाद है या आलस्य है ? उसे खुद को कैसे पता चलेगा कि 'मुझमें उदासीनता प्रकट हुई है या फिर यह मेरा आलस्य है?' दादाश्री : उदासीनता तो वैराग्य आने के बाद की उच्च दशा है और वीतराग होने से पहले की दशा है। बहुत सख्त वैराग्य रहने लगे और जब तक वीतरागता उत्पन्न न हो जाए, उस समय उदासीन दशा रहती है। वह बहुत उच्च दशा है। वह यों ही नहीं रह सकती, इन लोगों में नहीं रह सकती! प्रश्नकर्ता : पच्चीस साल की उम्र में जो इच्छाएँ होती हैं, वैसी इच्छाएँ चालीस साल या पैंतालीस साल में नहीं रहती तो इन सब में
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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