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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
राग-द्वेष रहित, वही शुद्ध ज्ञान अब, आत्मा को उपयोग में रखना यानी आत्मा कोई चीज़ नहीं है, ज्ञान दर्शन है। उस ज्ञान दर्शन को उपयोग में रखना है, शुद्ध ज्ञान दर्शन। शुद्ध ज्ञान दर्शन किसे कहा जाता है ? राग-द्वेष रहित ज्ञान दर्शन, वही शुद्ध ज्ञान दर्शन है और इस जगत् के पास जो ज्ञान दर्शन है, वह राग-द्वेष वाला है। वह अशुद्ध है, राग-द्वेष सहित है और जो राग-द्वेष रहित है, वह शुद्ध ज्ञान कहलाता है।