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________________ [१] प्रज्ञा ६१ संबंध, सूझ और प्रज्ञा के बीच प्रश्नकर्ता : तो यह जो कुदरती सूझ है उसका प्रज्ञा से क्या संबंध है? दादाश्री : यह जो सूझ है, वही प्रज्ञा की ओर ले जाती है। हाँ, वह सूझ ही काम करती है। अगर इसमें कुदरती रूप से कोई काम करता है तो वह सिर्फ सूझ है। अज्ञान दशा में सूझ ही काम करती है। प्रश्नकर्ता : वह प्रज्ञा का भाग नहीं है? दादाश्री : नहीं! सूझ अर्थात् जहाँ आवरण खुल गए हैं। प्रश्नकर्ता : लेकिन क्या वह प्रज्ञा की तरफ ले जाती है ? दादाश्री : उसी तरफ, परमानेन्ट की तरफ ले जाती है। प्रश्नकर्ता : लेकिन वह जो भाव है, वह भाव कहाँ आएगा इसमें? दादाश्री : वह जो भाव करता है, वह सूझ (समझ) में से ही आता है। अहंकार अलग चीज़ है लेकिन जो समझ है, वह समझ बढ़तेबढ़ते-बढ़ते-बढ़ते प्रज्ञा तक पहुँच जाती है। और जब प्रज्ञा उत्पन्न हो जाती है तब वह आत्मा में ही मिल जाती है। लेकिन सूझ, समझ का भाग है तो वह उस समझ के अनुसार, ज्ञान के अनुसार भाव करता है। वह है दर्शन, सूझ नहीं है प्रश्नकर्ता : सूझ को प्रज्ञा कह सकते हैं? दादाश्री : नहीं! प्रज्ञा ज्ञान है जबकि यह सूझ तो दर्शन है। अज्ञा को बुद्धि कहा जाता है। हमें तो दिखाई देता है, आगे-पीछे का सभी! पीछे क्या हो रहा है, वह भी दिखाई देता है। अगर कोई कहे, 'मैं पीछे खड़ा हूँ, मैंने हाथ ऊँचा किया या नहीं?' वैसा नहीं दिखाई देता। स्थूल नहीं दिखाई देता। सूक्ष्म दिखाई देता है। जो सूक्ष्म विभाग है न, वह सारा दिखाई देता है। समझ की वजह से वह दिखाई देता है यह स्थूल तो, जब संपूर्ण केवलज्ञान हो जाता है, तब दिखाई देता है।
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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