SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) बुद्धि तो, जब वह ज्ञानीपुरुष की बातें सुने, तब उसकी बुद्धि सम्यक् होती है। हाँ, फिर वह बुद्धि अटैकिंग स्वभाव या ऐसा कुछ उल्टा-सुल्टा नहीं करती। जो अटैक न करे, हमला न करे, वह कहलाती है सम्यक् बुद्धि। चाहे कैसे भी संयोग हों लेकिन हमला न करे, वह कहलाती है सम्यक् बुद्धि और जो प्रत्येक संयोग में हमला करे, वह कहलाती है विपरीत बुद्धि। जिस तरह से हार्ट का अटैक आता है न, उसी तरह उसे भी अटैक आता है। बुद्धि को अटैक नहीं आता? चंदूभाई साहब (फाइल नं-1) थे विकट, नहीं देखा आपने? प्रश्नकर्ता : देखा है। अटैक तो आते थे लेकिन वे अटैक दिखाई नहीं देते थे। आपके पास आकर जब एक्स-रे निकाला तब पता चला कि अंदर का ऐसा सब है। दादाश्री : हाँ, ठीक है। तभी पता चलेगा न! जब तक देखा नहीं है, तब तक इन दूसरी चीज़ों को, वह तो ऐसा ही जानता है कि यही अपना है और यही मालिकी। उसमें और क्या अंतर है ? हर्ज क्या है ? सभी के यहाँ है, वैसा ही अपने यहाँ है। उसमें फिर विभाग बनाता है कि यह अच्छा है और यह खराब। यहाँ पर तो अच्छा-बुरा है ही नहीं न! यहाँ पर तो सनातन की तरफ ले जाने वाली चीजें हैं। यह मिथ्या है न, उसमें से सनातन की तरफ ले जाने वाली चीजें हैं। बातचीत, व्यवहार वगैरह सब सनातन की और ले जाने वाली चीजें हैं। आप जब उसे देखते हो तब आपको ऐसा लगता है कि यह अलग है। यह, वह वाला नहीं है। प्रश्नकर्ता : सम्यक् बुद्धि गलतियाँ नहीं करवाती? दादाश्री : अटैक नहीं करवाती। प्रश्नकर्ता : और जागृति गलतियाँ दिखाती है? दादाश्री : जागृति तो सभी कुछ दिखाती है। अंदर कोई भी आया
SR No.034041
Book TitleAptvani 13 Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy