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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : क्या टोटल सेपरेशन हो जाने के बाद प्रज्ञा का उदय होता है और यह जो लौकिक बुद्धि है, वह चली जाती है?
दादाश्री : अलग हो जाने के बाद बुद्धि खत्म हो जाती है। प्रज्ञा का अनुभव तो पहले से ही शुरू हो जाता है, संपूर्ण अलग (जुदापन) नहीं हुआ हो तब भी। प्रतीति बैठने का अर्थ यही है कि एक तरफ प्रज्ञा शुरू हो गई। बुद्धि, बुद्धि की जगह पर रहती है और प्रज्ञा प्रकट हो जाती है।
प्रज्ञा की सिर्फ ज्ञानक्रियाएँ प्रश्नकर्ता : इसके बाद प्रज्ञा की जो दशा आती है, उसे ज्ञान कहा जाता है?
दादाश्री : नहीं! प्रज्ञा ज्ञान का ही स्वरूप है, उसी का भाग है लेकिन जब तक यह शरीर है तब तक उसे प्रज्ञा कहा जाता है और सभी कार्य भी वही करती है। और जब शरीर नहीं रहता तब उसी को आत्मा कहा जाता है।
प्रश्नकर्ता : क्योंकि आत्मा कुछ भी नहीं करता इसलिए उसके एजेन्ट के रूप में प्रज्ञा ही सबकुछ करती है?
दादाश्री : हं, वह कर्ता के तौर पर नहीं, सिर्फ ज्ञानक्रियाएँ करती है।
बुद्धि से बड़ी है प्रज्ञा, उससे भी बड़ा है विज्ञान प्रश्नकर्ता : अज्ञाशक्ति अर्थात् बुद्धि?
दादाश्री : हाँ, वह बुद्धि ही है लेकिन वह शक्ति बुद्धि-अहंकार वगैरह सब मिलकर बनती है। सिर्फ बुद्धि हो तब तो उसे हम बुद्धि कहेंगे, अब प्रज्ञा का अर्थ है ज्ञान । आत्मा वगैरह सब मिलकर प्रज्ञाशक्ति उत्पन्न होती है।
प्रश्नकर्ता : क्या प्रज्ञा बुद्धि से भी बड़ी चीज़ है ? दादाश्री : हाँ, वह बुद्धि से बड़ी है लेकिन विज्ञान प्रज्ञा से भी