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________________ आप्तवाणी - ९ 44 गया कि इसके पीछे चाल है । ऐसी चाल समझ में नहीं आएगी क्या ? तब क्या इतना भोला था जैसा अभी हूँ ? फिर मैंने कहा, 'अब आपका और मेरा, दोनों का अलग कर देते हैं ।' यह तो नहीं पुसाएगा इसलिए अब आप भादरण में रहो और वहाँ आपको पाँच सौ - सात सौ, जितने रुपये चाहिए होंगे उतने भेज दूँगा । अब हम दोनों को साथ में नहीं रहना है। वहाँ पर चंद्रकांत भाई, भाणा भाई, वगैरह पाँच-छह लोग बैठे थे, उन्हें भी सीखने को मिलना चाहिए न कभी ! उपदेश मिलना चाहिए न ! हीरा बा फिर वापस चाय बनाने लगे। तो स्टोव हिलाकर बजाया ज़ोर से, तो स्टोव रो उठा। मैंने सोचा, 'आज उठापटक चली है । अब स्क्रू घूमाओ, वर्ना गाड़ी उल्टी ही चलेगी। तो मैंने तो अंदर जाकर चाय के, चीनी के, घासलेट के डिब्बे वगैरह सब ऊपर से नीचे फेंक दिए । सबकुछ इधर-उधर फेंक दिया, जोर-ज़ोर से । जैसे 400 वोल्ट के पावर ने छू लिया हो ! सबकुछ फैला दिया। सामने से उन्हें चढ़ाने वाली स्त्री आई, आसपास से भी सब लोग आ गए। उनसे मैंने कहा, 'ये हीरा बा, ऐसी देवी जैसी स्त्री, उनमें पोइज़न किसने डाला ?' 'भाई, आपको ऐसा क्रोध नहीं करना चाहिए । 'ज्ञानीपुरुष' हो आप।' 'ज्ञानीपुरुष' का ही क्रोध देखने लायक है । देखो तो सही। फिर कहा, ‘अंदर ज़हर डाला इसीलिए यह दशा हुई है न! क्यों ऐसा डाला ? क्या बिगाड़ा है आपका ?' तब उन्होंने कहा, 'भाई, हमने कुछ भी नहीं डाला है। हमने बात की थी, बस उतना ही ।'' यह सब किसलिए ? उनकी ज़िंदगी खराब की आप लोगों ने ?' तब उन्होंने कहा, 'क्या जिंदगी खराब की?' मैंने कहा, 'अब अलग रहना पड़ेगा इन्हें । अब भादरण में अपना नया मकान बनाया है, उसमें हीरा बा को रहना है। महीने का पूरा खर्च दूँगा।' तब उन्होंने कहा, 'भाई, ऐसा नहीं करते, नहीं करते ऐसा । इस बुढ़ापे में क्या ऐसा करना चाहिए ?' मैंने कहा, 'जिस मटके में दरार पड़ गई, वह मटका अब किस काम आएगा ? उसमें से तो पानी रिसेगा । चाहे कितना भी पानी भरा जाए, फिर भी बाहर निकल जाएगा । जिस मटके में दरार पड़ गई हो उसे रखते हैं क्या ?' ऐसा कहा तो पड़ोसी घबरा गए, ‘ऐसा कह रहे हैं? मटके में दरार पड़ गई !' लोग समझ गए कि अब हीरा बा को अलग रहना पड़ेगा। हाँ, धर्म पर आफत नहीं आनी चाहिए। ४४
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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