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[१] आड़ाई : रूठना : त्रागा
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प्रश्नकर्ता : लेकिन आपने तो आपके सामने त्रागा करने वाले की बात नहीं मानी और उसे कहा कि 'तेरे जैसे तो कितनों को ही अंटी में डाल दूं।' तो वह कौन सा तरीका है?
दादाश्री : कितनी ही जगहों पर तो उसकी बात मानी भी है। माना इसलिए कि इस बेचारे को... ऐसे करते-करते सीधे रास्ते पर आएगा यह। सिर्फ इसी एक भाव से।
वह तो टुच्चापन है वकीलों को भी ऐसे त्रागा करने वाले मिलते हैं न! कोई ऐसा त्रागा करनेवाला व्यक्ति हो न, तो वकील भी कहेगा कि 'अरे इससे तो छूटो।' और उस त्रागे वाले से क्या कहेगा? कि 'भाई, तेरा केस लडूंगा। तू फीस मत देना।' अर्थात् सभी तरह के लोग होते हैं।
प्रश्नकर्ता : कई बार कुछ वकील भी त्रागा करते हैं कि 'पहले पैसे दो। बाद में ही कोर्ट में खड़ा रहूँगा, वर्ना नहीं।' फिर अंतिम घड़ी में ऐसा भी कह देता है कि अभी पैसे दो तो कोर्ट में जाऊँगा, वर्ना नहीं।
दादाश्री : नहीं, वह त्रागा नहीं कहलाता। वह तो आमने-सामने गर्ज़ की बात है।
प्रश्नकर्ता : वह तो पूरी फीस लेने के बाद भी और अधिक पैसे लेने के लिए करते हैं।
दादाश्री : हाँ, वैसा भी करते हैं, तब भी वह त्रागा नहीं कहलाता। वह निर्लज्जता कहलाती है। निर्लज्ज को जीता जा सकता है। बाकी, त्रागा तो तिर्यंचगति पार कर लेता है। वकील भी खुला झूठ बोलते हैं और मुवक्किल भी खुला झूठ बोलते हैं कि, 'साहब, मैंने आपको रुपये दिए हैं, मैं भूला नहीं हूँ। आप पाँच-सात लोग खड़े थे न, तब मैंने आपको दिए थे।' अब वकील को भी ऐसा उल्टा चिपट जाता है तो वकील भी क्या करे? वकील भी इंसान है न? आफ्टर ऑल वह इंसान है न! क्या करे वह?