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________________ [१] आड़ाई : रूठना : त्रागा है। ऐसा एक त्रागे वाला मेरे पास त्रागा करने लगा। तब मैंने कहा, 'भाई महादेव जी के पास जाकर सिर फोड़। यहाँ किसलिए फोड़ रहा है? ये तो महादेव जी के महादेव जी हैं ! तू लाख त्रागे करे न, फिर भी पेट का पानी भी नहीं हिलेगा, ऐसा पुरुष है यह।' मुझे ज्ञान नहीं था फिर भी मैं कहता था कि, 'तू मेरे पास लाख त्रागे करे फिर भी पेट का पानी नहीं हिले, ऐसा हूँ मैं।' यह त्रागे की कला तो बहुत दुष्कर है। हम भी उससे दूर भागते हैं। वह कला हमने देखी है इसलिए हम आपसे कह रहे हैं। प्रश्नकर्ता : उस त्रागा करने वाले को यदि न्याय दिखाना हो तो क्या करना चाहिए? दोनों ही त्रागे वाले हों तो? ___ दादाश्री : मैं उसमें नहीं पढूंगा। त्रागों के मामले में हम नहीं पड़ते। प्रश्नकर्ता : नहीं, लेकिन न्याय करने का प्रश्न आए तो क्या करना चाहिए? दादाश्री : अरे, न्याय करनेवाला भी पूरी तिर्यंचगति पार कर ले, ऐसा होता है। मेरे पास कोई त्रागा करनेवाला आ जाए तो वह तो अपनी जिंदगी में ऐसा करना ही भूल जाएगा। वह समझ जाएगा कि यह त्रागा करना गुनाह है। एक त्रागा करने वाली स्त्री थी, उसने मुझसे क्या कहा? कि 'इतने सारे लोग मिले, यदि किसी से मेरी मनमानी नहीं करवा सकी तो वह सिर्फ आप ही हो।' तब मैंने कहा था कि 'आप जैसों को तो मैं अंटी में डालकर घूमता हूँ।' प्रश्नकर्ता : त्रागा करने वाले के सामने उसे अंटी में डालकर काम लेना, वह सीखना पड़ता है ? वह भी विद्या है न! दादाश्री : वह हमें आता है लेकिन उसमें भी बहुत पड़ने जैसा नहीं है। वह तो अगर ज़बरदस्ती आ पड़े, तभी मैं ऐसे में पड़ता हूँ।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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