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[१] आड़ाई : रूठना : त्रागा
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चलता? त्रागा करना भले ही नहीं आए, लेकिन त्रागा कोई कर रहा हो तो पता तो चल जाता है न?!
प्रश्नकर्ता : ये जो सत्याग्रह करते हैं, वह त्रागा कहलाता है ?
दादाश्री : वह एक प्रकार का छोटा त्रागा ही है लेकिन ऐसा है कि उसे अलंकारिक भाषा में कहा जा सकता है। अलंकारिक भाषा में कहते हैं कि यह सत्याग्रह कर रहे हैं जबकि त्रागा तो, उसे कोई सत्याग्रह कहेगा ही नहीं न!
त्रागा अर्थात् संक्षेप में कहने का भावार्थ क्या है कि खुद को जब कोई काम करवाना ही हो और सब राजी नहीं हो रहे हों तो ज़बरदस्ती से करवाना। त्रागा कर-करके, डरा-डराकर! ऐसे डराता है, वैसे डराता है, ऐसा करता है, वैसा करता है और अंत में मनमानी करवाता है।
प्रश्नकर्ता : साम-दाम-दंड-भेद का उपयोग करके भी करवा लेते हैं।
दादाश्री : हाँ, लेकिन अपनी सारी मनमानी करवा लेता है। करवाए बगैर छोड़ता नहीं है। उसे कहते हैं त्रागा! ऐसे त्रागे मैंने देखे हैं, मैंने तो पाँच-सात बार देखे हैं लेकिन मैंने तो दूर से ही नमस्कार कर लिए कि 'हे त्रागा, तू भी मत दिखना और करनेवाला तो दर्शन ही मत देना।' यह त्रागा तो सीखी हुई चीज़ है और फिर उसे कोई गुरु मिल आते हैं। यह कोई खुद की बनाई हुई चीज़ नहीं है।
प्रश्नकर्ता : यानी खुद की मनमानी करवाने के लिए जो आग्रह करते हैं, वह त्रागा कहलाता है?
दादाश्री : जो आग्रह है, वह त्रागा नहीं कहलाता लेकिन लोगों को डराकर उनसे काम करवा लेता है। डराता है न कि 'नहीं तो मैं आत्महत्या कर लूँगा, नहीं तो मैं ऐसा कर लूँगा, वैसा कर लूँगा?'
प्रश्नकर्ता : धाक जमाना, धमकी देना, साम-दाम-दंड-भेद सबकुछ करके।