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आप्तवाणी-९
प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : तब ठीक है।
प्रश्नकर्ता : आपने कहा न कि 'हमारा दूध गया, रूठे थे इसलिए।' वह किस उम्र में?
दादाश्री : वह नौ-दस साल की उम्र में।
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, नौ-दस साल की उम्र में हमने भी इसी तरह दूध खोया था। हमें भी नुकसान हुआ था खाने का, ऐसा तो लगा था कि यह नुकसान हुआ फिर भी हमने वैसा जारी ही रखा लेकिन आपने कैसे बंद कर दिया?
दादाश्री : मैंने तो सुबह का दूध और वह सब खोया, तब मैंने हिसाब निकाला था कि 'मैं रूठा इसलिए इतना नुकसान हुआ! अतः रूठना बिल्कुल नुकसानदेह है इसलिए यह सब बंद कर देना है। टेढ़ा होना ही नहीं है।'
अब यह आड़ाई ही कहलाएगी न! हम हठ करें कि 'मुझे इतना कम दूध क्यों?' 'अरे जाने दे न, पी ले न।' अगली बार देंगे। बा से मैं क्या कहता था? 'बा आप मुझे और भाभी को एक समान मानते हो? भाभी को आधा सेर दूध और मुझे भी आधा सेर दूध देते हो? उन्हें कम दो।' मेरा आधा सेर रहने देना था। मुझे बढ़ाना नहीं था लेकिन भाभी का कम करो। डेढ़ पाव या पाव सेर करो। तब बा ने मुझे क्या कहा था? 'तेरी माँ तो यहीं पर है, लेकिन उसकी माँ यहाँ पर नहीं है न! उसे बुरा लगेगा बेचारी को। उसे दुःख होगा इसलिए एक सरीखा देना पड़ता है।' फिर भी मुझे स्वीकार नहीं हुआ लेकिन बा मुझे समझाते रहते थे, पैबंद लगाते रहते थे। यानी एक बार आड़ापन किया, तो फिर नुकसान हो गया। तब मैंने कहा कि अब फिर से आड़ापन नहीं करना है। नहीं तो तब सभी कहेंगे, 'रहने दो फिर इसे !' तब फिर ऐसा ही होगा न!