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________________ आप्तवाणी - ९ हो चुका है कि यह गाड़ी चली जाएगी। दुनिया तो चलती रहती है। तू बेकार में आड़ाई क्यों करता है ? २८ यह तो ऐसा है न कि मैं अगर इस गाड़ी के गार्ड से या ड्राइवर से रूठ गया तो वह कुछ देर में कहे कि, 'भाई, बैठ जाओ न ! अभी क्यों झगड़ा कर रहे हो ? बैठ जाओ न !' लेकिन अगर मैं रूठा रहूँ कि, 'नहीं बैठूंगा !' तो वह ट्रेन लेकर चला जाएगा या नहीं चला जाएगा ? दुनिया कभी ठहरती है क्या ? दुनिया तो चलती ही रहेगी। आप उसके साथ एडजस्ट हो जाओ। वर्ना भटक मरोगे 'स्टेशन' पर। वह तो सीटी बजाएगा न? वह भी देखा है मैंने तो । ऐसे भी खेल देखे हैं सारे। ड्राइवर गाड़ी चलाकर ले गया और ये रह गए ! प्रश्नकर्ता : फिर उसे लगता है न, कि यह गाड़ी चली गई और मुझे नुकसान हुआ ? दादाश्री : वह क्या मानता है कि, 'मैंने जो किया है, वही सही है।' उसे भी यदि वह ऐसा माने कि नुकसान हुआ, उसमें यदि ऐसा समझ आ जाए तो फिर से भूल होगी ही नहीं न! इतनी समझदारी होती नहीं है न। इंसान खुद अपनी कमियों को देख सके, ऐसी समझदारी भी नहीं होती उसमें। इंसान के बूते की बात नहीं है न! उसके लिए तो बहुत शक्तियाँ चाहिए। गाड़ी चले जाने के बाद क्या मन में नहीं होता कि आज तो कोर्ट की तारीख थी और कहाँ इससे झगड़ा किया ? फिर मन में पछतावा नहीं होगा क्या ? कोर्ट में तारीख हो और किसी कारण से हमारा झगड़ा सही हो, भूल उन लोगों की हो, हमारी भूल नहीं हो, फिर भी गाड़ी छूटने से पहले उस भूल का निकाल कर देना चाहिए न ? वे विनती करें कि, 'भाई, अब छोड़ो न, यहीं से ! उस मास्टर से भूल हो गई ।' लोगों के ऐसा कहने पर भी हम नहीं बैठें तो घनचक्कर ही कहलाएँगे न ? फिर गार्ड भी व्हिसल बजा ही देगा न ! तो इस प्रकार से यह पूरी दुनिया चली जाती है और रूठने वाले मूर्ख बैठे ही रह जाते हैं बैंच पर। प्रश्नकर्ता : उसे फिर एक-दो लोग ऐसा कहने वाले भी मिल जाते हैं कि आपने बिल्कुल ठीक किया है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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