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________________ आप्तवाणी-९ 'चंदूभाई' से कहते भी हो कि, "आप जैसे हो वैसे ही दिखाई देते हो और वैसा ही लोग कहेंगे तो अब ज़रा सीधे हो जाओ। 'दादा' और 'मैं' बैठे हैं, तो हमारी हाज़िरी में सीधे हो जाओ।" तो वह सीधा हो जाएगा। वर्ना, खुद अपने आप सीधा होना हो तो नहीं हुआ जा सकता। या फिर गुरु सीधा कर देते हैं। लेकिन गुरु खुद सीधे होने चाहिए। लेकिन सीधे गुरु मिलने मुश्किल हैं न! ऐसा है यह 'अक्रम विज्ञान' । यानी यह तो, जिसमें आड़ाई थी, वह 'मैं' नहीं हूँ। इस तरह पूरी जगह ही खुद ने खाली कर दी न! उसके बाद बचा ही क्या फिर? गुनहगारी में जो था, उसकी गुनहगारी छूट गई। और जो मूल गुनहगार था, उसे वहीं पर रहने दिया। मूल गुनहगार तो वही' था। यह तो आपने' बिना बात के अंदर 'पार्टनरशिप' कर ली थी। फिर अब सीधे हो गए न? 'आप' खुद सीधे हो गए तो इसकी, 'चंदूभाई' की आड़ाई निकाल दोगे। जब तक पार्टनरशिप थी, तब तक इस 'चंदूभाई' की आड़ाई नहीं निकल सकती थी। अब पार्टनरशिप छूट गई है, इसलिए 'आप' 'चंदूभाई' को धमकाकर भी आड़ाई निकाल दोगे। अतः यह 'अक्रम विज्ञान' का प्रताप है कि जो टेढा है वह 'मैं' नहीं हूँ, और 'मैं' तो यह शुद्धात्मा हूँ! प्रश्नकर्ता : यानी जिसे सुधारने की कोशिश करता है, फिर भी नहीं सुधरता, और उसके पीछे पूरा जीवन खत्म हो जाता है, लेकिन 'खुद' वह वस्तु है ही नहीं न? ऐसा ही हुआ न? दादाश्री : हाँ, इसलिए अंत ही नहीं आता न! इसीलिए तो अनंत जन्मों तक भटकना पड़ता है न! इसीलिए तो लोगों ने तीर्थंकर महाराज से कहा था कि 'हे भगवान! आपको जो क्रमबद्ध लिंक मिली है, वह किसी महा भाग्यशाली को ही मिलती है!' क्रमबद्ध लिंक अर्थात् यहाँ से आगे का रास्ता, उससे आगे का रास्ता, उससे आगे का रास्ता, ऐसे मिल जाता है। क्रमबद्ध ! और फिर आखिर तक!
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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