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________________ [१] आड़ाई : रूठना : त्रागा दादाश्री : नहीं तो और क्या? वे क्या कभी परेशान नहीं करती? वर्ना यह तो निरा आड़ाई का ही माल भरा हुआ है। जिनमें आड़ाई नहीं होती, उन्हें सरल कहते हैं। उन्हें जैसे मोड़ो वैसे मुड़ जाते हैं। प्रश्नकर्ता : क्या पुरुष खुद ऐसा कबूल करेंगे कि हम टेढ़े हैं ? वह तो जब उसकी पत्नी कहेगी, तभी पता चलेगा। दादाश्री : यों तो स्त्रियाँ भी बहुत टेढ़ी होती हैं। यह सिर्फ पुरुष की ही बात नहीं कर रहे हैं। ये तो, दोनों ही ऐसे होते हैं तभी तो बच्चे ऐसे हो जाते हैं न! और स्त्रियों को टेढ़ी बनाने वाले ये पुरुष ही हैं। वे टेढ़ी नहीं होती हैं। मूलतः जन्मजात टेढ़ी नहीं होती। यह पुरुष तो जन्म से ही टेढ़ा होता है। वह माता के अंदर भी ऐसे-ऐसे कोहनियाँ मारता है। पुरुष जाति तो माँ को यों कोहनियाँ मारती है। माँ ने ज़रा सी भी ज्यादा मिर्ची खा ली हो तो अंदर कोहनियाँ मारता है। जबकि स्त्रियाँ, वे जन्मजात ऐसी टेढ़ी नहीं होती। देखना है, खुद को खुद का ही ये तो लोगों की आड़ाईयों की बातें करते रहते हैं। जैसे उन्होंने खुद की आड़ाईयाँ निकाल दी हों! इसलिए लोगों से कहते हैं । ' यह टेढ़ा है', ऐसा नहीं कहना चाहिए। प्रश्नकर्ता : दादा, सामनेवाला व्यक्ति टेढ़ा दिखे वह भी खुद की ही आड़ाई है न? दादाश्री : वह सब से बड़ी आड़ाई है न! प्रश्नकर्ता : मतलब खुद की ही सारी आड़ाईयाँ देखनी है? दादाश्री : तो और किसकी? किसी और से कहने जाओ तो उल्टा आपसे झगड़ा करेगा। प्रश्नकर्ता : आड़ाईयों का भी कई बार हमें पता ही नहीं चलता। वह हमें सीधापन ही लगता है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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