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________________ ४८६ आप्तवाणी-९ आगे बढ़ते हैं न? इन शब्दों को पकड़-पकड़कर धीरे-धीरे 'मूल वस्तु' तक पहुँच पाएगा न? दादाश्री : हाँ। पहले इसमें से निकलता है धीरे-धीरे ! इस दरवाज़े में घुसने के बाद, फिर दूसरे दरवाज़े तक जा सकेंगे। लेकिन अगर कोई पहले दरवाज़े में भी नहीं घुसा है तो उसका क्या होगा? पहचानने वाला ही प्राप्ति करेगा प्रश्नकर्ता : ऐसी गहन बात निकले न, तब आपकी बहुत उच्च प्रकार की पहचान होती है उस समय। आपकी दशा की बहुत अद्भुतता लगती है, 'अक्रम विज्ञान' की अद्भूतता महसूस होती है। दादाश्री : सभी को यह पहचान समझ में नहीं आती है न। क्या पहचान को समझना आसान बात है? पहचान समझ में आ जाए न, तो वह उसी रूप हो जाएगा। पहचानना आसान बात नहीं है न! हाँ, जिसे ऐसा दिखता है कि हमारा ' आपोपा'! जा चुका है, उसे बहुत बड़ी बात समझ में आ गई। वह 'आपो' को समझ गया। आपोपुं गया, हो गया परमात्मा ___ अब यह आपोपुं जाए किस तरह ? कि जिनका आपोपुं चला गया है उनके दर्शन करवा दें न तो वही उसकी 'फिटनेस' है, बाकी कुछ नहीं। प्रश्नकर्ता : दर्शन करने से ही हो जाता है? दादाश्री : दर्शन करने से सबकुछ होता है। आज ही यह बात निकली है। आपोपुंशब्द निकला है क्या? यह तो जब कोई प्रकरण खुले तब 'ओपन' होता है। जिसका यह आपोपुं चला जाए, भगवत् उसका चला लेते हैं। पोतापणुं चला जाए तो भगवत् चला लेते हैं। फिर क्या परेशानी है, बोलो। हमारा आपोपुं चला गया है, फिर बाकी का सब भगवत् चला लेते हैं।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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