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________________ ४६६ आप्तवाणी-९ प्रश्नकर्ता : जितना आप कह रहे हैं, उतना आसान नहीं है। दादाश्री : आसान नहीं है लेकिन यह क्या है ? यह बात किसलिए कर रहे हैं? कि यह बात उसकी श्रद्धा में बैठ जाए न, तो धीरे-धीरे अनुभव होते जाएँगे। हम ऐसा करने को नहीं कहते। यह जानकर रखना है कि इस तरह हमें प्रकृति का रक्षण करना बंद करना पड़ेगा। जितना प्रकृति का रक्षण करते हैं, उतना ही गलत है न! पड़ोसी की तरह उसके लिए फर्ज़ निभाना है लेकिन क्या ऐसे रक्षण करना चाहिए? कोई उतार दे तो उतर जाने को कहना चाहिए और फिर बुलाए तो बैठ जाने को कहना। प्रश्नकर्ता : कई बार हर मौके पर ऐसा ध्यान नहीं रहता कि यह प्रकृति है। दादाश्री : इतनी अधिक जागृति रहती नहीं है न! इसीलिए तो हम ऐसे हिलाते रहते हैं कि जिससे जागते रहें लेकिन ये तो हम उठाएँ तब भी ‘हाँ उठ रहा हूँ, हाँ उठ रहा हूँ' कहकर वापस करवट लेकर सो जाता है। हमारे पास 'व्यवस्थित' का इतना अच्छा ज्ञान है न! साधन नहीं है क्या 'व्यवस्थित' का? प्रश्नकर्ता : साधन है। बहुत अच्छा है। दादाश्री : निबेड़ा आ जाएगा न? निबेड़ा आ जाएगा, ऐसा पक्का हो गया है न? प्रश्नकर्ता : लेकिन अपने ज्ञान में अगर 'व्यवस्थित' ठीक तरह से समझ में आ जाए तो पोतापणुं छूट जाएगा? दादाश्री : छूट जाएगा न! पोतापणुं छोड़ने के लिए ही मैंने 'व्यवस्थित,' दिया है, और 'एक्जेक्ट' है यह। 'व्यवस्थित' यानी 'साइन्टिफिक' चीज़ है। वह कहीं आपको यों ही दी हुई चीज़ नहीं है। अवलंबन गलत नहीं दिया है, 'एक्ज़ेक्ट' है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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