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________________ ४६२ आप्तवाणी-९ है। कला करके रक्षण करता है, कपट करके रक्षण करता है, वह डबल पोतापणुं है। दादाश्री : हाँ, वह डबल पोतापणुं। बच्चे भी रक्षण करते हैं लेकिन कला करके नहीं करते। प्रश्नकर्ता : खुद को पता चलता है कि यह कपट किया, कला करके खुद की प्रकृति का रक्षण किया। तो वह क्या कहलाएगा? दादाश्री : इतना पतला कपट हो तो उसका पता चलता है। कपटी को भी पता चलता है, मोटा कपट हो तो पता भी नहीं चलता। वहाँ है गाढ़ पोतापj पोतापणुं छोड़ने की इच्छा है? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : लेकिन पहले तो हमसे किसी को दुःख होना बंद हो जाएगा, उसके बाद फिर वे परतें जाएँगी। प्रश्नकर्ता : कौन सी परतें? दादाश्री : पोतापणुंकी और बाकी की सब परतें। यह तो पोतापणुं करता ज़रूर है, और वापस 'अटैक वाला पोतापणुं। रक्षणवाला पोतापj अलग और 'अटेक'वाला पोतापणुं अलग। प्रश्नकर्ता : यह तो बहुत बड़ी बात निकली! एक रक्षणवाला और दूसरा 'अटेक'वाला। दादाश्री : हाँ, जब 'अटेक' वाला चला जाता है तब फिर रक्षण वाला आता है। तब वास्तव में वह पोतापणुं कहलाता है। वर्ना तब तक तो उसे हिंसक भाव ही कहते हैं। 'अटेक' वाला पोतापणुं छूट जाने के बाद ही रक्षण वाला पोतापणुं छूटने की शुरुआत होती है। प्रश्नकर्ता : 'अटेक' वाले पोतापणुं के बारे में ज़रा ज़्यादा समझाइए
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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