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समर्पण अनंत जन्मों चढ़े, परम पद पाने के लिए, मथे, हाँफे, थके और अनंत बार गिरे।
अपनाई बाधक गली, साधकने सरल राह छोड़कर,
सौ कमाने में कषाय हुए, दो सौ का नुकसान उठाया आपोपं अपने कपट, ममता, लोभ, लालच, चतुराई, मान, स्पर्धा, टीका, गुरुता, अहम् और जुदाई।
कच्चे कान, दूसरों का सुनना, पूजाने की कामना,
आराधना रोककर, करवाए कितनी विराधना। निपुणता का अहम्, लालच बदला दे पटरी, 'मैं जानता हूँ' का कैफ, ज्ञानी के दोष देखकर खोट खाई।
आड़ाई, स्वच्छंद, शंका, त्रागुं, रुठना, उद्वेग,
मोक्षमार्गी साधकों के हेल्दी मन में फैलाएँ 'प्लेग'। मोक्षमार्ग में बाधक कारणों को कौन बताए? कौन छुड़वाए? कौन वहाँ से वापस मूल मार्ग पर लाए?
मार्ग के 'जानकार' बताएँगे सभी बाधक कारण, सूक्ष्म अर्थ विवेचन 'आप्तवाणी' साधकों को समर्पण!