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________________ ४४४ आप्तवाणी-९ कोई भी स्वतंत्र शब्द मत लाना। यहाँ से ले जाकर उसी शब्द का उपयोग करना, स्वतंत्र नया मत रखना। नया स्टेशन भी मत बनाना या फिर बनाया है ? नींव नहीं डाली? नहीं बनाया? चेतावनी तो होनी चाहिए न! वर्ना तो न जाने कहाँ जाकर खड़े रहोगे! अभी तो मार्ग बहुत अलग तरह का है यह। कितनी सारी ऐसी लुभावनी जगहें आती हैं ! कभी भी देखी नहीं हो ऐसी लुभावनी जगहें आती हैं ! जहाँ बड़े-बड़ों ने धोखा खाया है वहाँ आपकी क्या बिसात? इसलिए 'दादा भगवान' के इस मार्ग पर चलो अच्छी तरह। हे ! 'क्लिअर रोड फर्स्ट क्लास'! जोखिम नहीं, कुछ नहीं! मोक्षमार्ग के भय स्थान अतः जो कुछ मोक्षमार्ग में बाधक हो उसे छोड़ देना और आगे बढ़ो फिर से। वह ध्येय से पर कहलाता है न! खुद का ध्येय चूक नहीं जाए, कैसे भी कठिन परिस्थिति में भी खुद का ध्येय नहीं चूके ऐसा होना चाहिए। आपका ध्येय अनुसार चलता है क्या कभी? उल्टा नहीं कुछ भी? यह तो सहज हो गया है, नहीं? प्रश्नकर्ता : अंदर 'हैन्डल' मारते रहना पड़ता है। दादाश्री : चलाते रहना पड़ता है ? लेकिन क्या वे अंदर वाले मान जाते हैं ? तुरंत ही? प्रश्नकर्ता : तुरंत ही। दादाश्री : तुरंत? देर ही नहीं? यह अच्छा है। जितना वे मान जाएँगे, उतना ही वह मुक्त होने की निशानी है। उतने ही हम उससे अलग हैं, वह निशानी है उसकी क्योंकि खुद कोई रिश्वत नहीं लेता। रिश्वत लेगा तो वे बात नहीं मानेंगे। 'खुद' उनसे रिश्वत खाता है तो वे आपकी बात नहीं मानेंगे फिर। 'खुद' स्वाद ले आता है, फिर 'अंदर वाले' नहीं मानते।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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