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________________ ४३४ आप्तवाणी-९ उत्पन्न होता है। क्षयोपशम हुआ है इसका मतलब अहंकार है तो सही, लेकिन अभी दिखाई नहीं देता। अग्नि है लेकिन ऊपर राख है इसलिए हमें ऊपर से दिखाई नहीं देता। हम ऐसा जानते हैं कि राख है लेकिन ज़रा सी भी हवा आएगी तो पता चल जाएगा, भभक उठेगा। तब ‘जागृति' परिणामित होती है 'ज्ञान' में जागृति बढ़ाते रहना, तो लाभदायक होगा। जागृति बढ़ी हुई हो न, तो और कर्म बंधन नहीं होगा। जागृति से कर्म बंधन नहीं होता, अतः अंदर बिल्कुल शुद्ध हो जाता है। तब तक 'इगोइज़म' विलय होता रहता ___मान में कपट नहीं है। मान में कपट होता तो जागृति ही उत्पन्न नहीं होती। कपट यानी पर्दा ! जिस पर पर्दा है, वह दिखाई नहीं देता, वहाँ वह अंध रहता है। प्रश्नकर्ता : कपट क्या है? दादाश्री : चीज़ को ढंकने की कोशिश करता है। यह सब कपट ही कहलाएगा न! अंदर सारा कपट ने ही उल्टा करवाया है न। अहंकार और कपट दोनों एक हो जाएँ, तब होता है न ऐसा! उल्टे रास्ते कौन ले जाता है? क्रोध-मान-माया-लोभ। वे चारों ही जब इकट्ठे हो जाते हैं तो उल्टे रास्ते पर ले जाते हैं। मूलतः यह सारा अहंकार का है और अंदर लोभ किस चीज़ का है? अंदर उसे स्वाद आता है। जागृति ज्ञान में परिणामित हो, उससे पहले तो कपट का एक अंश तक नहीं रहना चाहिए। किसी भी प्रकार के कपट का अंश नहीं रहना चाहिए, विषय का अंश नहीं रहना चाहिए। यानी विषय का विचार तक नहीं आना चाहिए। क्या-क्या जाना चाहिए? अहंकार क्षय हो जाना चाहिए। बुद्धि क्षय हो जानी चाहिए। उपशम हुई बुद्धि नहीं चलेगी। सभी कर्म क्षय हो जाने के बाद क्रोध-मान-माया-लोभ क्षय होते हैं। सभी गुण क्षायक हो
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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