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________________ ३९६ आप्तवाणी-९ दादाश्री : तो फिर वहाँ बंद कर देना चाहिए। प्रश्नकर्ता : यानी किसी भी 'पोइन्ट' पर गलतफ़हमी हो जाए, और सामनेवाला व्यक्ति कहे, "आप करेक्ट नहीं हो,' तो उस बात को छोड़ ही देना चाहिए न? दादाश्री : हाँ, छोड़ देना चाहिए। हर्ज क्या है ? नहीं छोड़ेंगे तो सामने वाले के मन में चलता रहेगा न कि 'इन्होंने ऐसा क्यों कहा?' तब मैंने कहा, "वह जो कहेगा, क्या वह 'व्यवस्थित' नहीं है? उसने जो पूछा, क्या वह 'व्यवस्थित' नहीं है?" हमारे पास समाधान होता है। नहीं तो इसका कब अंत आए? लेकिन हम समाधान ला देते हैं। 'यह सही है और यह भूलवाला है' ऐसा कहना, वही भूल है अपनी। हमें तो तुरंत ही ऐसा मान लेना चाहिए कि, 'भई, उनका सही है और हमारा गलत।' ऐसा करके चलने लगो तो उन्हें भी कोई परेशानी नहीं रहेगी न! किसी का 'क्लेम' नहीं रहेगा, फिर। किसी का 'क्लेम' रखकर हम छूट सकें, ऐसा होगा नहीं न! भरे हुए माल का पक्ष नहीं लेना चाहिए जहाँ पर अंदर अभी तक अहंकार भरा हुआ है, तो वह चढ़ेगा तो सही न। फिर भी वह निकाली अहंकार है, वह वास्तविक अहंकार नहीं है। फिर भी 'खुद' 'उसका' पक्ष लेता है। सच्चा-झूठा ठहराने निकले! ऐसा नहीं होना चाहिए। हठ करता है न, तो आत्मा पर और भी अधिक आवरण चढ़ता है। हालाँकि इस 'ज्ञान' के बाद तो यह सारा अब सिर्फ व्यवहार रहा है। निश्चय से हठ भी गई, द्वेष भी गया, राग भी गया, और सबकुछ गया। अब व्यवहार सचेतन नहीं है, वह अचेतन है। अचेतन अर्थात् हम उसके साथ फिर से छेड़छाड़ करेंगे तो काम होगा। वर्ना इसी तरह फूट-फूटकर फिर गिर जाएगा। उल्टा होता है तो ऐसे कूदेगा! अनार (आतिशबाज़ी) फूटता है और फूटकर उसके लक्षण दिखाकर चला जाता है, इसके अलावा कुछ नहीं। आपको समझ में आया न? उसके लक्षण दिखाता है
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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