SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 442
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [७] खेंच : कपट : पोइन्ट मैन ३९१ दादाश्री : आप मेरे साथ बात कर रहे हों तो मैं आपको उसका जवाब देता हूँ और अगर आप अपनी बात को सही ठहराने के लिए फिर से बात करते हो, उसे खेंच कहते हैं। बार-बार ऐसी खेंच रखते हैं। यदि 'ज्ञान' लिया हो तो खेंच ही नहीं रहती न! अगर खेंच हो तो निकाल देनी चाहिए क्योंकि वह भूल है। और निकालने के बाद भी नहीं निकले तो हर्ज नहीं है। अगर खेंच है तो खेंच को भी 'आपको' देखना है, तो 'आप' छूट जाओगे! खेंच को भी आप देखोगे तो छूट जाओगे। आप हमारे नियम में हो! यह खेंच, वह अलग चीज़ है। खेंच यानी, मैं कहूँ कि, 'भाई, नहीं, ऐसा है।' तब फिर उसकी खुद की बात सही ठहराने के लिए बार-बार दलील करता रहता है। उसे खेंच कहते हैं। खेंच वाले के पास, जहाँ पर खेंच है वहाँ पर किसी प्रकार का सत्य नहीं होता। खेंच ही सब से बड़ा दूषण है। खेंच नहीं है का मतलब क्या है कि अगर आप कहो कि 'पसंद नहीं है' तब वह कहेगा, 'नहीं करेंगे, लो!' और कोई झंझट ही नहीं न! प्रश्नकर्ता : खुद का सही ठहराने के लिए कोई व्यक्ति बहुत दलीलें करे और खुद की बात सही ठहराने का प्रयत्न करे, तब समझना कि 'बेस' गलत है। दादाश्री : और वह भी, दलीलें भी खुद की जागतिपूर्वक नहीं की जाती। अजागृति रहे तभी दलील करता है न! इंसान अजागृत हो तभी दलील करता है। जागृति वाले क्या कभी दलील करते हैं ? प्रश्नकर्ता : दलील करना गलत है या अच्छा है? । दादाश्री : वह संसार में अच्छा है। संसार में यदि आपको कुछ करना हो तो अच्छा है, लेकिन मोक्ष में जाना हो तो गलत है। संसार में यदि आप दलील नहीं करोगे तो लोग आपका ले जाएँगे। और यहाँ सत्संग में दलील करना ही गलत है। 'ज्ञानीपुरुष' ने जो कहा वहाँ पर बोलना नहीं चाहिए। ये जो सत्संग की बातें हैं, इनमें नहीं बोलना चाहिए।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy