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________________ ३८२ आप्तवाणी-९ हम मुक्त! और मैं तो ऐसा भी कहता हूँ, 'अब आप ढूँढने जाओगे तो मुझमें कोई बरकत नहीं रही!' तब वे लोग कहेंगे, 'ऐसा मत कहिए।' अब अपने हाथ में पतंग आ गई। लोगों की पतंग को गोता खाना होगा तो खाएगी, लेकिन अपनी पतंग की डोर तो हाथ में आ गई! हम इन लोगों की दौडधाम में कहाँ पडे?! 'सब-सबकी संभालो, मैं मेरी फोड़ लेता हूँ।' इस अक्ल का करना क्या है? आप यदि इसमें गहरे उतरे होते न, तो कितने गहरे उतर चुके होते लेकिन आप हमारी तरह दूर ही रहे, वह अच्छा हुआ! हमें तो लोग सामने से कहते हैं कि, 'आप तो यों बहुत तरह-तरह का अच्छा दिखाते हो।' तब मैंने कहा, 'नहीं।' अंत में ऐसा भी कह देता हूँ कि, 'मैं सब भूल गया हूँ, अब तो भान ही नहीं रहता।' ___ 'मझमें तो कोई बरकत नहीं रही अब,' जब ऐसा कहते हैं, तो लोगों को बहुत अच्छा लगता है। वर्ना बरकतवाले लोग तो यहाँ पर सौदा करने आ जाएंगे। अरे! यहाँ पर यह क्या सौदा करने की चीज़ है? (हम) सब से ऊपर हैं! सौदा तो तेरी काबिलीयत का कर! हम तो ऊपरी के भी ऊपरी हैं और फिर बगैर बरकत वाले हैं ! इसलिए कह देते हैं, 'बगैर बरकत वाले में क्या ढूँढ रहे हो?' चोर-लुटेरे मिलेंगे न, तब भी कह देंगे, 'हमारे जैसे बगैर बरकत वाले से क्या लेना है? तुझे जो चाहिए वह ले ले जेब में से! हमें देना नहीं आता। हम बगैर बरकत वाले हैं।' लोग तो बचपन से ही डाँटते थे कि 'तुझमें कोई बरकत नहीं है।' कोई और कहे उससे तो फिर हम ही कह दें न! किसी को शायद कहना पड़े, कोई 'सर्टिफिकेट' दे, उसके बजाय हम ही 'सर्टिफाइड कॉपी' बन जाएँ न, तो झंझट ही मिट जाएगी न! लोगों को कहना पड़े कि, 'तुझमें बरकत नहीं है, तुझमें कुछ भी बरकत नहीं है!' और हम वह बरकत लाना चाहें तो इसका हिसाब कब मिलेगा? इससे हम ही 'सर्टिफाइड' बिना बरकत वाले हो जाएँ न! तो हल आ जाए न!
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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