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________________ ३७४ आप्तवाणी-९ नहीं आए, उसमें स्टेनलेस स्टील क्या करे बेचारा? बेकार आदमी के हाथ में जाकर वह भी बेवकूफ हो जाता है !' यानी यह सब विकल्पी हैं। यह सारा (सांसारिक) ज्ञान ऐसा है कि कभी भी मोक्ष में न जाने दे। वहाँ हो गया अहंकार शून्य ___मुझे तो भाषण देना भी नहीं आता। यह 'ज्ञान' है इतना ही आता है, दूसरा कुछ नहीं आता इस जगत् में। दूसरा कुछ नहीं आया इसलिए तो यह आया! और कहीं पर भी सीखने भी नहीं गया। नहीं तो जिसे देखो वह गुरु बनकर बैठेंगे। उसके बजाय इसमें 'एक्सपर्ट' तो हो जाएँ, निर्लेप तो हो जाएँ! मुझे तो संसार के मामले में कुछ भी नहीं आता है और स्कूल में भी कुछ नहीं आता था। बस इतना ही आता था कि ऊपरी नहीं चाहिए। वह इतना बड़ा झंझट लगा था। सिर पर कोई नहीं चाहिए! फिर चाहे कुछ भी खाने-पीने का हो, उसमें हर्ज नहीं है लेकिन सिर पर कोई ऊपरी नहीं चाहिए। यह जो शरीर है, वह शरीर अपनी 'एडजस्टमेन्ट' लेकर ही आया है। अब यह 'ज्ञान' ऐसा है न कि यह सभी काम कर देता है। बाकी, हमें संसार का कुछ भी काम नहीं आता लेकिन फिर भी काम अच्छा चलता है, सभी से अच्छा चलता है। सभी लोगों को तो डाँटना व चिल्लाना पड़ता है। मुझे तो चिल्लाना भी नहीं पड़ता। फिर भी उनकी जितनी निपुणता है, उससे भी ज्यादा अच्छा काम होता है। अब जिन्हें चप्पल सिलनी आती है, उसे चप्पल सिलते रहने हैं ! कपड़े सीना आए, उसे कपड़े सीते रहने हैं! और जिसे कुछ नहीं आए, उन्हें फालतू बैठे रहना है। कुछ आए नहीं, तो क्या करे फिर?! भगवान ने कहा है कि जिसे कुछ भी आता है, वह ज्ञान अहंकार के आधार पर टिका है। जिसे नहीं आता है उसे अहंकार ही नहीं है न! अहंकार हो तो आए बगैर रहेगा नहीं न! मुझे तो सिर्फ यही आता है,
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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