SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 423
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी - ९ यानी कि हम साफ ही कह देते हैं न कि, 'भाई, हमें व्यवहार में ऐसा समझ में नहीं आता ।' तभी तो वे हमें छोड़ेंगे न! ऐसा कहेंगे तभी दुःख मुक्त हो पाएँगे न ! ३७२ इसे कुशलता कैसे कहेंगे? बाकी, समझदार तो यहाँ पर बहुत मिल आएँगे न ! ऐसे होते हैं न, तो वे कहेंगे, ‘साहब, आपका केस मैं जितवा दूँगा। बस, तीन सौ रुपये दे देना ।' ऐसा कहते हैं न? घर का खाता-पीता है, पत्नी की गालियाँ खाता है और अपने लिए काम करता है ! अब तो महंगाई बढ़ गई है न? तो ज़्यादा रुपये लेते होंगे न ? ! 44 और ये सभी हिन्दुस्तान के लोग हैं न, वे भी अपनी समझ से करते हैं। किसी से सारा पूछकर नहीं सीखे हैं कि, 'इस 'मशीनरी' का यह बटन दबाने से क्या होगा ? वह बटन दबाने से क्या होगा ? वह बटन दबाने से क्या होगा?" कोई उसके 'टेकनिशिन' से पूछकर तैयार नहीं होता। यह तो सारा अंधाधुंध चला है। हिन्दुस्तान के लोगों को तो यह भी नहीं आता कि 'रेज़र' कैसे चलाना चाहिए । यह भी नहीं जानते कि उस्तरे के फल को धार कितनी चाहिए - कितनी नहीं । ऐसे घिसने से हो जाएगा क्या?! और शायद बहुत कंजूस हो तो पत्थर पर घिसता रहता है, तो बल्कि जो धार होती है वह भी खत्म हो जाती है । और फॉरेनर तो कैसे हैं? विकल्पी नहीं होते न ! ऊपर लेबल लिखा होता है कि इस ब्लेड का किस तरह से उपयोग करना है । इस 'रेज़र' पर नंबर क्यों लिखे हैं एक, दो, तीन, चार, पाँच, छः, सात ? वह सब उसके 'टेकनिशियन' से पूछते हैं और उसकी सलाह के अनुसार करते रहते हैं जबकि अपने यहाँ तो विकल्पी, ज़रूरत से ज़्यादा अक्लमंद ! पत्नी कहेगी कि, 'मैं अभी मंदिर जाकर आती हूँ ।' तब यह कहेगा कि, 'मैं कढ़ी बनाकर रखूँगा।' और बनाता भी है लेकिन वह न जाने किस चीज़ का छौंक लगाता है कि अपना मुँह बिगड़ जाता है । T कोई यहाँ रेडियो बजा रहा हो और आप सब यहाँ से उठ जाओ तो छोटे बच्चे मुझसे कहेंगे कि, 'इस रेडियो को ज़रा घुमाओ न !' तब
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy