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________________ ३६४ आप्तवाणी-९ दादाश्री : हाँ, तो बस, इन लघुतम पुरुष को देखना है और वैसा ही आपको बनना है, और क्या! यहाँ और कुछ नहीं सीखना है। ___ अपने महात्मा समझ गए हैं कि 'दादा' ने लघुतम सिखाया! अब दादा ही लघुतम हो गए हैं, तो फिर दूसरों को भी लघुतम हुए बिना चारा नहीं है न! और ऐसा ही ध्येय रखने जैसा है। जगत् में और कुछ भी करने जैसा नहीं है, यदि सच्चा सुख चाहिए तो। हम इस 'रिलेटिव' में लघुतम की जगह पर बैठे हुए हैं, आप सभी को यही कहते हैं कि 'ऐसे बन जाओ।' और कुछ कहते ही नहीं न! मुझे लगता है कि आपको एकाध साल लग जाएगा लघुतम बनने में?! प्रश्नकर्ता : लेकिन ऐसा लघुतम बनना, वह तो बहुत बड़ी चीज़ दादाश्री : नहीं, इतनी बड़ी चीज़ नहीं है। आपने' तय किया न, कि 'मुझे लघुतम बनना है' तो मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार ये सभी उसी तरफ जाने लगेंगे! अर्थात् जो ध्येय तय किया उसी तरफ जाएँगे। 'आप' कहो कि मुझे अभी सान्ताक्रुज़ जाना है, तो वह उसी तरफ जाएगा इसलिए ध्येय निश्चित करो। वर्ना, दुनिया में कोई ऐसा तय ही नहीं करता कि ‘लघुतम बनना है'। अपने 'ज्ञान' लिए हुए महात्मा ही ऐसा तय करते हैं कि, 'लघुतम बनना है।' क्योंकि सच्चा ज्ञान प्राप्त किया है, जबकि उन लोगों को तो भ्राँति है। लघुतम भाव की खुमारी यानी इस 'ज्ञान' के बाद ‘लाइन ऑफ डिमार्केशन' दी, 'रिलेटिवरियल' का 'एडजस्टमेन्ट' हुआ। अब लघुतम पद में खुमारी रहनी चाहिए हमें। खुमारी किस चीज़ की? पूरा जगत् गुरुतम की खुमारी रखता है तो हम किसकी खुमारी रखें? लघुतम की। इसमें कुछ बहुत गहन है ही नहीं।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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