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________________ [६] लघुतम : गुरुतम ३५९ भाव गया नहीं है न! व्यवहार में गुरुतम गया नहीं है न! यह गुरुतम भाव छूटा नहीं है। 'मैं कुछ हूँ' ऐसा रहता है, उसे निकाल देना है। बात को यदि समझे तब हल आएगा। वर्ना नहीं समझे तो इसका हल नहीं आएगा, ऐसा है। पूर्ण होने के लिए लघुतम भाव जैसा और कोई भाव है ही नहीं और दुनिया में मुश्किल से मुश्किल भाव हो तो लघुतम भाव है। इस लघुतम भाव को जगत् किस तरह प्राप्त कर सकेगा? वर्ल्ड के एक भी व्यक्ति को लघुतम भाव की प्राप्ति नहीं हो सकती। जो लघुतम भाव आपको प्राप्त हुआ है, वैसा 'वर्ल्ड' में कोई भी मनुष्य प्राप्त नहीं कर सकता। वह आसान चीज़ नहीं है, बहुत मुश्किल चीज़ है यह। लोग कहते हैं, 'भाई, कैसे हो?' तब हमें कहना है, 'हार गए भाई, हार गए।' अब हम हार गए कहेंगे तो 'रियल' में गुरुतम हो गए अपने आप ही, कुदरती। यानी लघुतम बनने का भाव रहना चाहिए। वर्ना बड़ा हुआ कि भटका। बड़ा हुआ और बड़ा माना कि भटका। पूर्ण पुरुष बड़े बनने जाते ही नहीं। ये तो सारे अधूरे घड़े ही बड़े बनने जाते हैं। पूर्ण पुरुष निःशब्द होते हैं। कोई ऐसा है कि जिसे गुरुतम नहीं बनना हो? व्यवहार में बड़े लोग हैं, वे भी ऐसे दिखाई देते हैं कि जैसे लघुतम बनना चाहते हैं, बाहर दिखने में लघुतम दिखाई देते हैं लेकिन अंदर भाव गुरुतम का होता है कि 'मैं कुछ हूँ' सब की तुलना में! बाहर बहुत से इस तरह के लोग हैं व्यवहारिक रूप से, लेकिन वे 'वस्तु' (आत्मा) कभी भी प्राप्त नहीं कर पाते। यह तो जब 'रियल' और 'रिलेटिव' की डिमार्केशन लाइन रखेगा तभी प्राप्त कर सकेगा। वर्ना इस संसार के झगड़े कम नहीं होंगे। 'लाइन ऑफ डिमार्केशन' 'द वर्ल्ड इज़ द पज़ल इटसेल्फ,' 'इटसेल्फ' 'पज़ल' हुआ है यह। 'गॉड हेज़ नॉट पज़ल्ड दिस वर्ल्ड एट ऑल।' यह खुद ‘इटसेल्फ' 'पज़ल' हुआ है। पहेली, गहन पहेली बन गई है यह। 'देयर आर टू व्यू पोइन्ट्स टु सॉल्व दिस पज़ल। वन रिलेटिव व्यू पोइन्ट, वन रियल व्यू पोइन्ट।'
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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