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________________ [६] लघुतम : गुरुतम प्रश्नकर्ता : यहाँ आपके पास प्राप्ति के लिए आते हैं। जो गुरु होंगे वे प्राप्ति के लिए कैसे आ पाएँगे ? ३५५ दादाश्री : हम तो लघुतम हो चुके हैं। वे सभी अभी तक लघुतम नहीं हुए हैं न ! लघुतम बन जाएँगे तो मेरे जैसे बन जाएँगे। बाकी, ज्ञान सारा दिया है । चिंता नहीं होती, 'वरीज़' नहीं होती, काम-धंधा करते हुए भी रागद्वेष नहीं होते, इस प्रकार का 'ज्ञान' दिया है लेकिन जब तक लघुतम नहीं बनेगा तब तक हमारे जैसा पद नहीं मिल पाएगा। प्रश्नकर्ता: सभी को आपने गुरु कहा, वे सभी फिर शिष्य कब बनेंगे ? और किस तरह बनेंगे ? दादाश्री : इन्होंने अब धीरे-धीरे यही प्रयत्न शुरू किए हैं कि 'हमें 'दादा' जैसे ही बन जाना है।' मेरी शर्त मात्र यही है कि मुझे किसी को डाँटना नहीं है। देखो और बनो, बस ! लघुतम बन जाओ तभी सही तरह से 'एक्ज़ेक्टनेस' आ जाएगी। यानी उतना काम बाकी है वर्ल्ड का शिष्य ही, वर्ल्ड का ऊपरी अपने 'विज्ञान' में तो 'दादा' आपके शिष्य बनते हैं। इतने सारे लोगों को 'ज्ञान' दिया है, उन सभी का मैं शिष्य हूँ। मैं तो पूरे 'वर्ल्ड' का शिष्य हूँ। पूरे वर्ल्ड का ऊपरी कौन बन सकता है? जो पूरे ‘वर्ल्ड' का शिष्य नहीं बना है, वह पूरे 'वर्ल्ड' का ऊपरी नहीं है। प्रश्नकर्ता: दत्तात्रेय भगवान को जहाँ-जहाँ से सद्गुण मिले, उस हर एक व्यक्ति में से सद्गुण लिए और कहा जाता है कि चौबीस गुरु उनके जीवन में आए थे। जबकि शास्त्र तो ऐसा कहते हैं कि गुरु तो एक ही होने चाहिए तो इस पर आप कुछ प्रकाश डालिए । दादाश्री : गुरु तो, पूरे जगत् को बनाने जैसा है। जहाँ कहीं से हमें कुछ ज्ञान मिले, वह प्राप्त कर लेना है। बाकी ऐसा है न, 'गुरु एक होने चाहिए,' इसका अर्थ क्या है ? कि किंडर गार्टन, फर्स्ट स्टेन्डर्ड,
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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