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________________ आप्तवाणी - ९ कहेंगे, 'हमारा धर्म सब से बड़ा ।' 'सब से नीचा है, ' ऐसा सिर्फ कौन कह सकता है ? जिसे वीतराग मार्ग मिला है, वह कहेगा, 'हमारा धर्म नीचा है लेकिन आपका धर्म ऊँचा है।' क्योंकि बच्चे हमेशा नीचे को बड़ा कहते हैं। बड़ी उम्र के लोग खुद अपने आपको छोटा कहकर बालक को बड़ा कहते हैं ! उन्हें खुद को संतोष है। ३५० और हम थोड़े ही किसी के ऊपरी है ? बल्कि हमें खुद ही उनके (अन्डर में) हाथ नीचे रहना है, तभी तो वे सीधे चलेंगे। नहीं तो सीधे नहीं चलेंगे। हम ऊपरी बनने जाएँगे तो वे उल्टे चलेंगे। हम कहें कि, 'हम आपके शिष्य हैं, ' तब वे सीधे चलेंगे। नहीं तो चलेंगे ही नहीं न सीधे । सभी को गुरु बनने में बहुत मज़ा आता है। पूरा जगत् 'रिलेटिव' में ही गुरुता दिखाने जाता है। एक-दूसरे से स्पर्धाएँ भी चलती हैं। एक कहता है, ‘मेरे एक सौ आठ शिष्य हैं।' तब दूसरा कहता है, 'मेरे एक सौ बीस शिष्य हैं।' यह सब गुरुता कहलाती है । 'रिलेटिव' में तो लघुतम की ज़रूरत है तो गिर नहीं जाएँगे, कोई परेशानी नहीं, दुःख स्पर्श नहीं करेगा। नहीं तो फिर यहाँ से भैंस और भैंसा बनना पड़ता है। यहाँ से मरकर, जैसे क्रोध- मान-माया - लोभ होते हैं न, वे उसे वैसी ही जगह पर ले जाते हैं। अत: इन लोगों का मतभेद ऐसा नहीं है कि यों ही चला जाए। वह तो योनि बदल जाने पर अपने आप चला जाता है । वर्ना नहीं जाता। इतने सरल इंसान हैं नहीं न ! कहेंगे, 'मैं कुछ हूँ ।' अरे, क्या है तू ? अब ‘रिलेटिव' में कौन लघुतम ढूँढता है ? ढूँढता है क्या कोई ? अगर गाड़ी में, ट्रेन में, सभी जगह ढूँढने जाएँ तो क्या एक भी मिलेगा ? तब क्या इन साधु-संन्यासियों में कोई मिलेगा ? सभी 'हम - हम' करते रहते हैं। ‘हम इतना शास्त्र जानता है, इतना जानता है, यह जानता है ' कहेंगे। लेकिन 'रिलेटिव' में जितना लघुतम बनेंगे, 'रियल' में उतना ही गुरुतम (पद) प्राप्त होगा इसलिए हम लघुतम बनकर बैठे हैं, तो सामने
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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