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________________ ३४६ आप्तवाणी-९ प्रश्नकर्ता : दिखाता ही है न! दादाश्री : लाचार होने के बजाय लघुतम होना अच्छा लेकिन लाचार नहीं होना चाहिए। किसी भी कारण से लाचार नहीं हो जाना चाहिए। ये सब जो बड़े लोग हैं न, उन्हें जब पेट में दुःखता है न, तब 'ओ माँ-बाप! आप कहोगे वह करूँगा' कहते हैं। उस घड़ी लाचार हो जाते हैं। जब अंदर दुःख होता है, तब, कहता है ‘डॉक्टर, मुझे बचाना।' ऐसी लाचारी दिखाते हैं। ये लोग बहुत नाजुक होते हैं इसलिए दुःख सहन नहीं होता। जो गुरुतम बनने गए न, उनका शरीर दिनोंदिन बहुत नाजुक होता जाता है। जबकि लघुतम होने के लिए तो मज़बूत शरीर की आवश्यकता है। कहेंगे, 'तुझे जो करना है वह कर!' लेकिन लाचारी नहीं रहती उन्हें। हमने पूरी जिंदगी में किसी भी जगह पर लाचारी नहीं दिखाई है। काट डालें तब भी लाचारी नहीं। लाचार बनना तो हिंसा कहलाती है, आत्मा की ज़बरदस्त हिंसा कहलाती है ! जब तक शरीर है तब तक दुःख हुए बगैर रहेगा नहीं, लेकिन लाचारी तो होनी ही नहीं चाहिए। लघुतम रहना चाहिए। खुद आत्मा, अनंत शक्ति का मालिक! और वहाँ पर अगर हम कहें कि 'मैं लाचार हूँ,' तो वह कितना हीन पद कहलाएगा? अरे, क्या लाचारी रहनी चाहिए? जिसके पास आत्मा है वह लाचार कैसे हो सकता है? जहाँ आत्मा हैं वहाँ पर लाचारी नहीं हो सकती। उसके बजाय लघुतम बन न! गुरुतम बनने गए, तो... आपको लघुतम बनने की इच्छा है? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : बहुत अच्छा कहलाएगा।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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