SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [६] लघुतम : गुरुतम ३४१ लघु, वह छोटा कहलाता है। लघुतर यानी और अधिक छोटा, और लघुतम यानी सब से छोटा, कोई भी जीव उससे छोटा नहीं है। बस! वही लघुतम। प्रश्नकर्ता : व्यवहार में कहते हैं न, दासानुदास हूँ, दास का भी दास और उसका भी मैं दास हूँ, वह ? दादाश्री : नहीं। अपने यहाँ दासानुदास तक पहुँचे हैं लेकिन लघुतम तक कोई नहीं पहुंचा है। जबकि हमारा यह लघुतम स्वरूप है इसलिए लोगों का कल्याण कर देगा। व्यवहार से लघुतम में हूँ और निश्चय से गुरुतम में हूँ। मैं किसी का गुरु नहीं बना हूँ। पूरे जगत् को गुरु मानता हूँ। आप सभी आए हो, आपको गुरु मानता हूँ। तब कोई कहेगा, 'आप यहाँ क्यों बैठे हैं ?' अब मैं यहाँ नीचे बैलूं, तो ये लोग बैठने नहीं देते। ये लोग मुझे उठाकर ऊपर बिठा देते हैं। बाकी, मुझे तो नीचे बैठना बहुत अच्छा रहता है। अतः गुरुपद में नहीं हूँ, लघुतम में hco भाव में तो लघुतम ही यानी मैं कोई आपका ऊपरी नहीं हूँ। आप मेरे ऊपरी हो। मैंने खुद को कभी भी ऊपरी नहीं माना है। तो फिर क्या आपको परेशानी है? घबराहट नहीं, परेशानी नहीं। अगर आपसे बड़े होते तो आप घबरा जाते कि, 'बड़े आदमी हैं, न जाने क्या कह देंगे!' आप मुझे डाँट सकते हो, लेकिन मैं आपको नहीं डाँट सकता। अगर मैं डाँट दूँ तो वह मेरी लापरवाही कही जाएगी और अगर आप डाँटोगे तो, आपकी नासमझी के कारण डाँटोगे, कमी है इसलिए डाँट दोगे न? बाकी, पूरा जगत् हमारा ऊ परी है क्योंकि मैं लघुतम हूँ। आपके कितने ऊपरी हैं ? क्यों नहीं बोल रहे हो! प्रश्नकर्ता : लेकिन मैं लघुतम नहीं मान पाया हूँ। दादाश्री : क्यों? क्या ऐसा नहीं हो सकता? ऐसा है न, गुरुतम अर्थात् ऊपर चढ़ना। यह पावागढ़ है, तो ऊपर चढ़ना हो तो ज़ोर लगेगा या नीचे उतरना हो, तब?
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy