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________________ [५] मान : गर्व : गारवता बहुत नहीं खोलना है। मैं थोड़ा बहुत खोल रहा हूँ, वह बुरा दिखेगा फिर । जहाँ चेहरे पर ऐसा भाव है कि 'मैं जानता हूँ,' वहाँ कभी भी फ्रेश नहीं दिखता । ३२५ प्रश्नकर्ता : लेकिन अहम् के बिना प्राप्ति कैसे हो सकती है ? दादाश्री : अहम् तो कैसा रखना है ? 'मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ' ऐसा अहम् रखना है। 'मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ' ऐसा अहम् रखकर यदि कार्य किया जाए तो वह अहम् फल देगा। नहीं तो फल ही नहीं देगा न! वर्ना 'पोइज़न' चढ़ता रहेगा, ज़हर चढ़ता ही रहेगा । वर्ल्ड में अगर कोई पूरे चार वेद के ज्ञाता हों, वे यहाँ पर आएँ, और मुझसे कहें कि, 'मैं जानता हूँ।' तब मैं उन्हें एक ही शब्द में कहूँगा कि, 'एक चुल्लूभर भी नहीं जाना है तूने ! जानना तो उसे कहते हैं कि कहना ही नहीं पड़े। ' I प्रश्नकर्ता : उसे तामस अहम् कहते हैं । वह सात्विक अहम् नहीं कहलाता ? सात्विक अहम् हो तो प्राप्ति होती है या नहीं होती ? दादाश्री : सात्विक अहम् रहना मुश्किल है न! उसकी परिभाषा देना बहुत मुश्किल है। सात्विक अहम् कैसा होता है कि 'मैं कुछ भी नहीं जानता ।' प्रश्नकर्ता : जो सहज भाव से ही होता है । दादाश्री : नहीं। ऐसा अहम् ही है कि, 'मैं कुछ भी नहीं जानता।' ये सभी लोग बेकार ही प्रयत्न कर रहे हैं, पूरी दुनिया बेकार ही प्रयत्न कर रही है। एक अक्षर भी मिल पाए, ऐसी चीज़ नहीं है। यह सत्य ढूँढा जा सके ऐसा नहीं है । जो सत्य इन लोगों को मिला है, वह विनाशी सत्य है। I आत्मा जाने बिना कुछ भी नहीं हो सकता, भटकते ही रहो क्योंकि पुस्तक में आत्मा नहीं होता । कहाँ से जानकर लाएगा ? 'ज्ञानी' से ही आत्मा प्राप्त होगा लेकिन 'ज्ञानी' होते ही नहीं है न! कभी-कभार ही होते हैं। इसलिए कृपालुदेव ने कहा है न, 'दुर्लभ, दुर्लभ, दुर्लभ, दुर्लभ हैं!' ज्ञानी होते ही नहीं ! कहाँ से लाए ?
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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