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________________ [५] मान : गर्व : गारवता ३२१ की वजह से, बीडियों की वजह से या चाय की वजह से यह संसार नहीं है, लेकिन इस गर्वरस से खड़ा है। सिर्फ यही रस ऐसा है कि जिसे छोड़ना किसी को भी अच्छा नहीं लगता। गर्व क्या है? आपको समझाता हूँ। कोई आपसे कहेगा, 'मैंने चार सामायिक की।' उस घड़ी उसके मुंह पर यों बहुत आनंद दिखाई देता है और जब हम पूछे, 'इसने कितनी सामायिक की?' तब वह कहता है, 'इससे नहीं होती। एक ही की है इसने।' फिर हम पूछे, 'साहब, चार सामायिक आपने की है !' तब वह कहता है, 'और कौन है करनेवाला? मैं ही हूँ न करनेवाला!' तब हम समझ जाते हैं न कि इसे कितना कैफ है ?! मन में खुद को न जाने क्या ही मान बैठता है। लेकिन दूसरे दिन हम पूछे, 'क्यों, आज कितनी सामायिक की?' तब वह कहेगा, 'आज तो पैर दुःख रहे हैं। नहीं की।' वर्ना कहेगा, 'मेरा सिर दुःख रहा है।' तो कल सामायिक पैर ने की थी या आपने की थी? किसने की थी? यदि आपने की थी तो पैर का बहाना मत बनाओ। यह तो पैर ठीक है, सिर ठीक है, पेट में नहीं दुःख रहा है इसलिए सामायिक हुई। सबकुछ 'रेग्युलर' हो, सभी संयोग सीधे हों तब हो पाती है। उसमें से आप अकेले ही क्यों सिर पर ले लेते हो?! यानी कि यह परसत्ता ने किया, उसमें आपका क्या? ऐसा सिर पर लेता है या नहीं लेता? लेकिन यह तो 'इगोइज़म' करता रहता है सिर्फ। यह सबकुछ कर रहा है 'साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' लेकिन 'खुद' कहता है, 'मैं कर रहा हूँ'। वह है गर्वरस! और जब तक गर्वरस चखने की आदत है न, तब तक यह संसार खड़ा रहता है। बात तो समझनी पड़ेगी न? यों ही गप्प चलती है क्या? प्रश्नकर्ता : लेकिन यह सब तो जन्म से ही लेकर आए हैं न? दादाश्री : हाँ, जन्म से ही लेकर आए हैं, लेकिन इसका भान नहीं रहता न! और गर्वरस चखता ही रहता है। गर्वरस चखना 'उसे' बहुत अच्छा लगता है। 'मैंने चार सामायिक की' कहते ही यों 'टाइट' हो जाता है और जिसने सिर्फ एक सामायिक की हो, उस पर दया खाता
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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