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________________ [५] मान : गर्व : गारवता ३०३ प्रश्नकर्ता : तो इन दोनों के बीच में क्या फर्क है? दादाश्री : मान और अभिमान, वे 'विथ रिच मटीरियल्स'! प्रश्नकर्ता : यानी मान और अभिमान, वे साधन-संपत्ति से जुड़े हैं? दादाश्री : हाँ। बाकी कुछ नहीं। अज्ञान दशा का श्रेष्ठ सद्गुण प्रश्नकर्ता : स्वमान और अभिमान इन दोनों के बीच में क्या भेद दादाश्री : स्वमान किस तरह का मान है? 'मुझे कोई ज़रा भी तंग न करे, उस तरह का मान और मेरी स्थिरता को कोई डिगाए नहीं।' स्वमान तो व्यक्ति उतने तक ही रखता है कि कोई उसे परेशान न करे और अभिमानी का मतलब तो, कोई अगर अभिमानी है न, तो वह क्या कहेगा कि, 'यहाँ से अपना बंगला शुरू हुआ, तो वहाँ तक बंगला है, उसमें उसके पीछे तो आपने देखा ही नहीं।' फिर उसकी बेटी के लिए ज़ेवर बनवाए हों, तो वे सब हमें दिखाता है। उसका अभिमान पुसाए इसलिए हमें दिखाते हैं। फिर, उसकी ज़मीन हो तो वह सब दिखाते हैं कि 'यह दो सौ बीघा जमीन मेरी है।' और अभिमानी हो न, वह तो पूरे दिन शीशे में देखता रहता है कि 'मैं कितना सुंदर हूँ!' और लोग कहते हैं न, 'हमारे बाप-दादा ऐसे थे और कुलीन वगैरह,' वे सभी अभिमानी। उसे स्वमानी नहीं कहते। स्वमानी तो, उसमें व्यवहार से, लेन-देन होता है। स्वमान अर्थात् सामने वाले का स्वमान रखना और उसके बदले में खुद का स्वमान प्राप्त करना, वह स्वमान कहलाता है। अतः संसार व्यवहार में स्वमान, वह तो व्यवहार है। स्वमान भंग नहीं हो तब तक चला लेना पड़ता है। हालाँकि हमें तो यह मोक्षमार्ग मिल गया है इसलिए हमारे लिए स्वमान की तो बात ही नहीं रहती लेकिन संसार व्यवहार को स्वमान तक संभाल लेना
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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