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________________ [५] मान : गर्व : गारवता २९३ प्रश्नकर्ता : उस अभिमान की वजह से हमारा अधिक ऊँचा और उनका नीचा' ऐसा बताता है न? दादाश्री : हाँ, अभिमान अर्थात् 'ऊँचा और नीचा।' उसका प्रमाण देता है कि 'यह मेरी जायदाद, वह मेरी जायदाद, यह मेरी गाड़ी।' यानी इसके आधार पर 'ऊँचा-नीचा' कहना चाहता है लेकिन ठीक से 'डायरेक्ट' 'ऊँचा-नीचा है' ऐसा नहीं कहता। अभिमान अर्थात् खुद के पास ज़रूरत से ज़्यादा चीजें हैं और उन्हें दिखाता है, वह अभिमान। उसके मन में ऐसा होता है कि 'देखो मैं कितना सुखी हूँ!' सामने वाले को नीचा दिखाने का प्रयत्न करना, उसे अभिमान कहते हैं। यानी अभिमान तो यही सब बताता है, यह दिखाता है, वह दिखाता है। अरे, अच्छे डेढ़ सौ रुपये के चश्मे ले आए तो वे भी दिखाता है। 'देखे चश्मे?' कहेगा। 'अरे, मुझे तेरे चश्मे का क्या करना है भला, जो मुझे दिखा रहा है?' लेकिन अभिमान को पोषण देने के लिए कहता रहता है। अरे, साढ़े तीन सौ रुपये की धोती ले आए न, उसे भी दिखाता रहता है। डेढ सौ के जूते ले आए तो वे भी दिखाता रहता है। वह अभिमान! अरे, इस हद तक कि यदि जमाई देखने में बहत सुंदर हो और बहुत पढ़ा-लिखा हो न, तो कहेगा, 'आप मेरे जमाई को तो देखो, चलो। मेरे जमाई को देखो।' अरे, तेरे जमाई में क्या देखने जैसा है ? सभी के होते हैं, वैसे ही तेरे जमाई। उसमें है क्या? तब वह कहता है, 'नहीं, मेरा जमाई देख लो।' फिर जब हम उससे कहें कि, 'ओहोहो कितने अच्छे दिखते हैं, बहुत अच्छे जमाई मिल गए।' तब फिर उसे संतोष होता है। तो फिर हमें खाना खिलाने भी ले जाता है, हं! कहेगा, 'आज तो यहीं पर खाना है। खाना खाए बगैर वापस मत जाना।' यों खाना खिलाने भी ले जाता है। अभिमान अर्थात् सब जगह मान का प्रदर्शन करना, जहाँ-तहाँ। उसके भाई का मकान छोटा हो तो वह भी दिखाता है कि 'यह मेरे भाई का मकान, यह मेरे चाचा का मकान, वह मेरा मकान।' बड़ा है, उस
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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