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________________ २८८ आप्तवाणी-९ हैं न! इस 'हम' को गाड़ी में कहाँ 'रिज़र्वेशन' मिलेगा, क्या वह नहीं समझता मैं? प्रश्नकर्ता : तो यह जो 'हम' है, उसे गाढ़ अहंकार कहते हैं ? दादाश्री : नहीं, 'हम' अहंकार को स्पर्श नहीं करता। अहंकार चला जाता है, लेकिन 'हम' नहीं जाता। ___'हम' तो चाहे सो करे। इस पुलिस वाले बेचारे को ऐसा 'हम' नहीं होता। अब अहंकार तो, अगर उसे समझाएँ-पटाएँ तो निकल जाता है लेकिन 'हम' तो बहुत अलग चीज़ है। इन संसारियों में जो 'हम' बन गया है न, वह तो मार खाकर फिर निकल जाता है। प्रश्नकर्ता : यह 'हम' जो है, वह अध्यास (भ्रांत ज्ञान) से मिलता जुलता है क्या? दादाश्री : अध्यास? नहीं। अध्यास तो, यह सब अध्यास ही कहलाता है और 'हम' तो ऐसा है कि अध्यास पर भी चढ़ बैठे। देह का अध्यास अलग चीज़ है लेकिन 'हम' के अध्यास की तो बराबरी नहीं की जा सकती। शरीर तो बेचारा भोला है। ये क्रोध-मान-माया-लोभ भी भोले हैं लेकिन इस 'हम' जैसी तो दुनिया में अन्य कोई चीज़ नहीं है। क्योंकि जब कुछ भी नहीं होता तब उसका जन्म होता है। स्वयं जात! हम! 'हम' वाले का पता चल जाता है मुझे ! उसकी आवाज़ में खनक होती है। खनक, कलदार रुपया खनकता है न, वैसे खनकता है! आपने देखा है न! प्रश्नकर्ता : अपने आसपास कहीं से 'हम' वाले का पता चलता है कि 'हम, मैं कुछ हूँ।' दादाश्री : नहीं, वह 'मैं कुछ हूँ' वह अलग है। ऐसा है न, ये सभी 'मैं कुछ हूँ' वाले जो हैं, वैसे संसारिक लोग आपको देखने को मिलते हैं। जो संसारिक हैं, उनका 'हम' तो कभी न कभी उतर जाएगा।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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