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________________ २८२ आप्तवाणी-९ मानी अलग, अभिमानी अलग। अहंकारी अलग, तुंडमिज़ाजी अलग, घेमराजी (खुद के सामने दूसरों को तुच्छ समझना) अलग! मान के पर्याय अनेक मान के सभी शब्द तो बहुत पर्यायों में हैं, इतने सारे पयार्य हैं। प्रश्नकर्ता : तुंडमिज़ाज, घमंड, ये सभी कहलाते हैं ? दादाश्री : हाँ, वे तो तरह-तरह के ऐसे सब शब्द हैं। लोग तो गर्व और गारवता (संसारिक सुख की ठंडक में पड़े रहना), वगैरह सब खुद की ही भाषा से समझते हैं न? अभिमान को गर्व कहते हैं ऐसे हैं लोग। अहंकार किसे कहना है, अभिमान किसे कहना है, मान किसे कहना है, गर्व किसे कहना है, तुमाखीवाला किसे कहना है ? प्रश्नकर्ता : खुमारीवाला किसे कहना है ? दादाश्री : खुमारीवाला, वे सब तरह-तरह के अभिमान हैं न! फिर कौन सा शब्द? घमंडी! घमंड तो उसमें कुछ भी क़ाबिलियत नहीं हो और कहेगा, 'अरे, वकील के बाप को हरा दूं।' इसलिए फिर हम समझ जाते हैं कि घमंडी है यह। तरह-तरह के लोग हैं सभी, माल सभी तरह का! फिर मच्छराल है, ऐसा कहते हैं कि और इनमें घेमराजी बहुत है, ऐसा भी कहते हैं। तो इन सब में 'डिफरेन्स' है, उसी वजह से अलग-अलग नाम रखे हैं। मच्छराल तो ज़रा मच्छर जैसा ही होता है। काट खाए वह तो जलन होती है। प्रश्नकर्ता : लेकिन ये सब अभिमान, घमंड, वे सब तो मनुष्य में कुछ उम्र हो जाने पर ही आते हैं न? बच्चों में ज़्यादातर ऐसा कुछ नहीं होता। दादाश्री : बच्चों में बिल्कुल ही नहीं होता। जैसे-जैसे बुद्धि बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे यह सारा तूफान बढ़ता जाता है। यानी इन सब शब्दों के पर्याय बहुत बड़े हैं। पर्याय समझना बहुत मुश्किल चीज़ है। वे तो 'ज्ञानीपुरुष' से जानने को मिलते हैं।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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