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________________ [५] मान : गर्व : गारवता २७९ प्रश्नकर्ता : दूसरी योनि में जाने के बाद यह मान-अपमान भूल जाते होंगे? दादाश्री : भूल जाते हैं। जब यहाँ से जाता है, तभी से भूल जाता है सबकुछ। याद नहीं रहता। आपने चार दिन पहले क्या खाया था, वह आपको याद है? प्रश्नकर्ता : नहीं। लेकिन बैर, मान-अपमान, ये सब जीव को याद रहता है तो यह सब क्यों भूल जाता है? दादाश्री : नहीं, वह भी याद नहीं रहता। सिर्फ ये क्रोध-मानमाया-लोभ ही याद रहते हैं और वे चार संज्ञाएँ तो हमेशा रहती ही हैं। बाकी, बैर-कड़वाहट तो बाद में होती है। वह याद नहीं आता। अपमान होते ही शोर-शराबा मचा देता है। उन गोलियों को क्या कहते हैं ? ये बच्चे खाते हैं वे? प्रश्नकर्ता : पिपरमिन्ट। दादाश्री : अब पिपरमिन्ट यहाँ पर पड़ी हो तो इस बच्ची को और बच्चे को, दोनों को लेना हो, उसमें से जो लोभी होता है वह ज्यादा ले लेता है। हमें पता चलता है कि यह लोभी है! लोभी पहचाना जा सकता है। लोभी हर किसी चीज़ में आगे रहता है। प्रश्नकर्ता : इंसान को इन सभी मुसीबतों का शांति से सामना करना चाहिए, वह हो नहीं पाता है, उसके लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : कैसे कर पाएगा? ये क्रोध-मान-माया-लोभ की कमजोरियाँ हैं, तो मुसीबतों का सामना कैसे हो सकेगा? क्रोध यों ही नहीं बैठा रहता। वह तो, जब तक मान नाम का शत्रु बैठा रहे, तभी तक क्रोध बैठा रह सकता है। क्रोध तो मान का रक्षण करने के लिए है। अतः जब तक मान है, तब तक गुरखा रहेगा ही। प्रश्नकर्ता : तो ऐसा है कि अपमान सहन करना सीख जाना चाहिए?
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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