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________________ भौतिक में सुख नहीं है, सुख आत्मा में ही है, ऐसी प्रतीति बैठ जाती है। खुद जब ऐसा दृढ़ निश्चय करता है तब गारवता छूटने लगती है। अक्रम विज्ञान ऐसा कहता है कि शुद्धात्मा पद प्राप्त होने के बाद जिस पर गारवता का असर होता है वह, वह खुद नहीं है और यह जागृति ध्यान में रहती है तो गारवता खत्म होती जाती है। गर्व नहीं, गारवता नहीं, अंतरंग स्पृहा नहीं, उन्मत्तता नहीं, पोतापणुं नहीं, ऐसी ग़ज़ब की ज्ञानदशा में बरतनेवाले प्रत्यक्ष ज्ञानीपुरुष के आश्रय में जाने से अनंत जन्मों का नुकसान एक जन्म में ही खत्म हो जाता है और मोक्ष प्राप्ति की गारन्टी मिल जाती है। ६. लघुतम : गुरुतम ज्ञानीपुरुष की दशा, व्यवहार में लघुतम और निश्चय में गुरुतम ! ज्ञानीपुरुष किसी के गुरु नहीं होते। वे किसी के ऊपरी (बॉस) नहीं, और उनका भी कोई ऊपरी नहीं, भगवान भी नहीं। भगवान तो ज्ञानीपुरुष के वश में रहते हैं। जिस किसी में अहंकार व ममता नहीं हैं, भगवान उसके वश में रहते हैं! जो पूरी दुनिया में सब से 'जूनियर' बने, वह पूरे ब्रह्मांड का 'सीनियर' बनता है। गणित में जो सब से छोटी अविभाज्य संख्या होती है, वह लघुतम है। उस परिभाषा पर से ज्ञानीपुरुष को बचपन में ही, पूर्वाश्रम में ही भगवान मिल गए थे कि भगवान ही लघुतम हैं। तभी से लघुतम की तरफ झुकते-झुकते अंत में संपूर्ण लघुतम बने और दूसरी तरफ गुरुतम भी बन गए। लघुतम तो हमेशा के लिए सुरक्षा देता है। लघुतम को गिरने का भय ही नहीं है न! जगत् में हर किसी को गुरुतम होना अच्छा लगता है। लघुतम होना पसंद नहीं है। जो गुरुतम बनने गया, वह चार गतियों में भटकेगा और लघुतम बना वह जल्दी मोक्ष में जाएगा। 32
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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