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________________ [५] मान : गर्व : गारवता २७७ दादाश्री : यह भोगता कौन है ? अहंकार। अहंकार भोगता है और अहंकार को ही होता है। यह अहंकार इसे भोगता है, और उसी को महसूस होता है। आत्मा को कुछ स्पर्श नहीं करता। आत्मा तो अपनी खुद की चीज़ के अलावा किसी और चीज़ को स्वीकार ही नहीं करता। दूसरी चीज़ों को स्वीकार ही नहीं करता। जिसका अपमान, वह 'खुद' नहीं है अगर 'चंदूभाई' का कोई अपमान करे तो क्या होगा? रात को नींद नहीं आएगी न? झटके लगेंगे! यों तो क्षत्रिय प्रजा है न, इसलिए झटके लगते हैं। वह अपमान करनेवाला तो सो जाता है, लेकिन यह झटकेवाला नहीं सोता! कोई अपमान करे और हमें नींद नहीं आए, वह किस काम का? ऐसी निर्बलता किस काम की? कोई अपमान करे तो हम क्यों नहीं सोएँ? और अपमान किसी और का होता है, आपका होता ही नहीं। आपका' अपमान करे तो सहन करना ही नहीं चाहिए, लेकिन वह 'आपका' अपमान नहीं कर रहा है, तो किसलिए ऐसे हाय-हाय कर रहे हो? यह तो, अपमान किसी और का हो रहा है और 'आप' सिर पर ले लेते हो। 'मेरा किया' ऐसा तो नहीं होना चाहिए न? हाँ, 'आपका' अपमान नहीं करना चाहिए किसी को लेकिन 'आपका' अपमान कोई करता ही नहीं। 'आपको' पहचानेगा ही कैसे? 'आपको' तो कोई पहचानता ही नहीं है न! कोई पहचाने तो 'चंदूभाई' को पहचानता है। वह 'आपको' तो पहचानता ही नहीं न! अब वह अपमान करनेवाला जब उपकारी माना जाएगा, तब आपका मान खत्म हो जाएगा। अपमान किसका होगा? 'अंबालाल मूलजी भाई का।' तुझे जितना अपमान करना हो उतना कर न ! मुझे कहाँ उनके साथ लेना-देना है? वे मेरे पड़ोसी हैं। वे यदि रोएँगे तो मैं उन्हें चुप करवाऊँगा। लेकिन 'मेरा अपमान हो गया' मानता है इसलिए बेचारे को नींद नहीं आती। वर्ना कितनी ग़ज़ब की शक्ति है एक-एक 'इन्डियन' में! सिर्फ उसे खोलनेवाला नहीं है। फिर भी देखो न अभी, दीन हो गए हैं
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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