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________________ [५] मान : गर्व : गारवता मान, ममता रहित 'ज्ञानीपुरुष' से तो सभी कुछ पूछा जा सकता है। यह 'अक्रम विज्ञान' ऐसा है कि यहाँ हर एक चीज़ पूछी जा सकती है। पैंतालीस 'आगमों' की हर एक चीज़ पूछी जा सकती है और वेदांत की भी सभी बातें पूछी जा सकती हैं। यह तो कुदरती रूप से हुआ है! और सब से बड़ा आश्चर्य, ग्यारहवाँ आश्चर्य माना जाता है। यहाँ एक घंटे में आपका सारा काम हो जाता है। प्रश्नकर्ता : पूर्वजन्म के आपके इतने अच्छे कर्म थे, फिर भी आपको क्यों इतनी बड़ी उम्र में ज्ञान हुआ? पहले क्यों नहीं हो गया? दादाश्री : ऐसा है न, जब हमारा मोहनीय कर्म खत्म हो जाएगा तभी ज्ञानावरण टूटेगा। ज्ञान का आवरण कब टूटता है? मोहनीय कर्म खत्म होने के बाद। हमें किस चीज़ का मोह था? हमें किसी प्रकार का मोह नहीं था। पैसों का या विषय का कोई मोह नहीं था। सिर्फ मान का ही मोह! प्रश्नकर्ता : हाँ। यह समझाइए न! 1958 में आपमें ज्ञान का अविर्भाव हुआ, उससे पहले की आपकी आंतरिक स्थिति के बारे में ज़रा विस्तारपूर्वक समझाइए न! दादाश्री : हाँ, ज्ञान का अविर्भाव होने से पहले क्रोध-मान-मायालोभ, राग-द्वेष और उनमें भी विशेष रूप से मान का ज़ोर था, साम्राज्य ही मान का था और उसी के आधार पर बाकी के जी रहे थे। मान का
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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