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________________ २५० आप्तवाणी-९ प्रश्नकर्ता : अब ये जो सब भूलें की हों, 'ज्ञानी' के पास उन सभी भूलों का प्रतिक्रमण कर ले और वापस निश्चय करके 'ज्ञानी' के बताए अनुसार चले तो? दादाश्री : लेकिन अगर अभी तक भूल दिखाई ही नहीं देती, तो किस तरह प्रतिक्रमण करे वह? वह तो, जैसे-जैसे हमारे कहे अनुसार आगे बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे भूलें दिखती जाएगी। यह तो अभी तक जो भूलें हुई हैं, वे भी नहीं दिखाई देतीं। यानी आज्ञा पालन की शुरुआत करे, फिर घर में, और सभी जगहों पर आसपास में सभी को संभाले, ऐसे करते-करते सभी भूलें दिखने लगेंगी और ऐसे सभी भूलें दिखेंगी, कुछ हद तक पहुँचेगा, तो हम रास्ता कर देंगे फिर आगे का! यह तो सारी शक्तियाँ फिर लालच तक पहुँचती है, इसलिए शक्तियाँ उसी में समा जाती हैं। यह हमारी दी हुई शक्ति उस लालच में खर्च हो जाती है। उसकी ज़िम्मेदारी तो हम पर आएगी। इसका थोड़ा-बहुत हल आने के बाद हमें यदि ऐसा लगे, विश्वास आए, तब हम इसके लिए शक्ति देते हैं। वर्ना वह शक्ति फिर लालच में खर्च हो जाएगी। तो उस शक्ति के आधार पर इसमें वापस मलीदा मिलेगा। यानी वह तो यदि हमें ऐसा लगे, कुछ हद का संयम आ जाए, तो दी हुई शक्ति काम की है। वर्ना यों शक्ति दे-देकर ही ऐसा हुआ है न! ऐसा मैं समझ गया हूँ। प्रश्नकर्ता : लेकिन जिस प्रकार से लाभ हो, आप वैसा कुछ कहिए न! दादाश्री : हाँ, वह तो उसी प्रकार से कहते हैं, लेकिन जैसा कहा वैसा यदि करे न, घर के सभी लोगों के साथ के व्यवहार में थोड़ा बहुत परिवर्तन आने लगे तो फिर लक्ष्मी की भी कभी कमी नहीं रहेगी। यानी पहले तो भूल की प्रतीति बैठनी चाहिए। फिर जब उसे वह पक्का हो जाए तो उसके बाद भूल खत्म होने लगती है और फिर दूसरी तरफ ज़बरदस्त पुरुषार्थ करना चाहिए। यह भूल ऐसी नहीं है कि बगैर
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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