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________________ [४] ममता : लालच सभी जगहों पर देखता है और फिसला, वह तो अंदर उसे लालच है इसलिए ही न ! प्रश्नकर्ता : उस समय यदि आज्ञा में नहीं रहे तो फिसल जाता है ? २४७ दादाश्री : लालच है इसलिए वहाँ पर आज्ञा में रह ही नहीं सकता न! जहाँ लालच हो वहाँ पर आत्मा एकाकार हो जाता है इसलिए उसे तो बहुत पुरुषार्थ करने की ज़रूरत है । प्रश्नकर्ता : अगर फिर से 'ज्ञान' लेने बैठे तो क्या लालच निकल जाएगा ? दादाश्री : नहीं निकलेगा । 'ज्ञान' में बैठने से थोड़े ही निकल जाता है ? यह तो, अगर वह खुद आज्ञा में रहने का प्रयत्न करे, निरंतर आज्ञा में रहना ही है ऐसा निश्चय करे और आज्ञाभंग हो जाए तो प्रतिक्रमण करे, तब कुछ बदलाव हो सकेगा । 'ज्ञानी' के पास आकर बदल जाए तो शायद बदल भी जाए ! मन-वचन-काया से बहुत मज़बूत रहकर, शुद्ध चित्त से बात करे न, तो कुछ हो सकता है, तो बदल सकता है । वर्ना नहीं बदल सकता। लेकिन लालच तो चित्त को शुद्ध होने ही नहीं देता न । निर्णय रहता ही नहीं न ! लालच उसके खुद के निर्णय को तोड़ देता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन कभी क्या उसके मन में ऐसा आता है कि 'मुझे इसमें से निकलना है ?' दादाश्री : वह रहता है! लेकिन लालच ऐसी चीज़ है न, कि पहले लालच जाए तभी फिर वह उसमें से निकल पाएगा। प्रश्नकर्ता : 'ज्ञानीपुरुष' की आज्ञा में रहने से उसका अंत आएगा न ? दादाश्री : लालच का अंत लाएगा तो आएगा । लालच को उखाड़ेगा तो आएगा। यानी उसके विरुद्ध प्रयोग करे कि आज्ञा का पूरी तरह से पालन करना है और नहीं कर पाए तो प्रतिक्रमण करने हैं । फिर घर के
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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