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________________ [४] ममता : लालच एक ही चीज़ खाए तो भी हर्ज नहीं है न! उसे अन्य और कोई लालच नहीं है न! यानी एक ही लालच में खेलता रहता है, बस । एक चीज़ पर आ जाए तब भी हर्ज नहीं है न! लालची तो हर किसी चीज़ के लालच में पड़े होते हैं ! यानी फिर जहाँ-जहाँ से चोर घुस सकते हैं न, वहाँ-वहाँ बाड़ बना देनी पड़ेगी । लालच तो बहुत ज़हरीली चीज़ है । लालच यदि एक लिमिट तक हो, एकाध चीज़ में, तो उसमें हर्ज नहीं है। २३७ लालची मोल लेता है जोखिम ही प्रश्नकर्ता : कोई एक ही लालच जो 'एकस्ट्रीम' है, तो क्या वही उसे फँसाता है ? दादाश्री : हाँ, ऐसा होता है न! कोर्ट में बहुत ही महत्वपूर्ण तारीख हो तब भी अगर लालच की जगह आ जाए, लालच पूरा हो ऐसी जगह मिल गई, तो वह कोर्ट भी छोड़ देता है । यों जोखिम मोल लेता है I प्रश्नकर्ता : उस व्यक्ति को बहुत गैरजिम्मेदार व्यक्ति कहा जा सकता है ? दादाश्री : गैरज़िम्मेदार नहीं कहा जा सकता, लेकिन बहुत अधिक ज़िम्मेदारीवाला कहलाता है ! लालच में ही शूरवीर होता है इसलिए बहुत ज़िम्मेदारी सिर पर लेता है । लालची की नज़र भोगने में ही लेकिन लालची यानी सभी बंदरगाहों का मालिक । फिर उसका स्टीमर तो सभी बंदरगाहों पर खड़ा रहता है । और जैसा खुद का माल होता है, उसे उसी माल का व्यापारी मिल जाता है। ऐसा नियम है ! प्रश्नकर्ता : लेकिन उसकी तो नज़र ही वहीं रहती है न ? दादाश्री : नहीं । नज़र पर से नहीं । नियम ही ऐसा है क्योंकि
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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