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________________ [४] ममता : लालच २२१ दादाश्री : इस 'ज्ञान' के बाद आपकी ममता चली गई है। अब उसे कहाँ निकालोगे फिर से? दोनों की साझेदारी में दुकान थी, 'आपकी' और 'चंदूभाई' की, उसका हमने बँटवारा कर दिया। 'चंदूभाई' ममता वाले हैं, उसमें हर्ज नहीं है, 'अपनी' ममता चली गई है। साझेदारी की दुकान का बँटवारा कर दिया तो ममता किसके हिस्से में गई? 'चंदभाई' के हिस्से में गई। अपने हिस्से में नहीं आई इसलिए हल आ गया। यह संग्रहस्थान है। होटल आ जाए तो हम भी चाय पीते हैं और लोग भी चाय पीते हैं लेकिन लोग इस संग्रहस्थान में क्या करते हैं ? 'वह चाय अच्छी थी, यह ठीक नहीं है। वह वाली कड़क थी, यह कड़क नहीं है।' जबकि हम लोग ऐसा कुछ भी नहीं करते। जो आया उसका निकाल! ड्रामेटिक ममता, ड्रामे तक ही फिर भी भगवान ने ममता रखने के लिए मना नहीं किया है। ममता रख, लेकिन नाटकीय ममता रख। नाटक में ममता नहीं रखते सभी? भर्तृहरि राजा आए, पिंगला रानी आई, भर्तृहरि रोते हैं, लेकिन सबकुछ नाटकीय इसलिए उसमें बंधन ही नहीं है। नाटक करो पूरा। खाओ, पीओ, सबकुछ लेकिन नाटकीय! मैं भी नाटक ही करता हूँ न! प्रश्नकर्ता : इस काल में नाटकीय ममतावाला मिलता है ? दादाश्री : नाटकीय ममता तो है ही नहीं न! वर्ना हम तो नाटक ही करते हैं न! हम कैसे हीरा बा का ध्यान रखते हैं ! और पंद्रह दिन में एक बार हीरा बा, भाणा भाई से कहती हैं कि, 'आज कहना दादा से कि भोजन के लिए आएँ।' तब हमें जाना ही पड़ता है। कितना भी काम हो, लेकिन सबकुछ एक तरफ रख देना पड़ता है। उन्हें राज़ी रखना पड़ता है। अगर वे चिढ़ जाएँ तो अपनी आबरू चली जाएगी। यह जो थोड़ी बहुत आबरू बची है, वह भी चली जाएगी। लेकिन वे चिढ़ें, ऐसा मैंने रखा ही नहीं है इसलिए हम हीरा बा के यहाँ जाकर भोजन कर आते हैं। अगर हीरा बा कहें, 'कल भोजन के लिए आना।' तो हम फिर
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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