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________________ २०२ आप्तवाणी - ९ ज्ञानी की मौलिक बातें प्रश्नकर्ता : ‘वेल्डिंग' शब्द तो, दादा की मौलिक बात है ! दादाश्री : ' वेल्डिंग' शब्द ही 'दादा' का है ! कोई कहे कि " मैंने दो लोगों की ‘वेल्डिंग' करवा दी" तो वह दादा का ही शब्द है, यह बात पक्की हो जाती है । यह 'वेल्डिंग' चीज़ ही मौलिक हैं। अभी तो कई लोग यह ‘वेल्डिंग' शब्द सीख गए हैं I प्रश्नकर्ता : यही कितना बड़ा विज्ञान है ! दादाश्री : ऐसे तो बहुत सारे विज्ञान हैं मेरे पास ! प्रश्नकर्ता : तो कुछ निकालिए न ! दादाश्री : वह तो संयोग होंगे तो निकलेगा न ! तोड़ते सभी हैं, जोड़ता है विरला ही आप क्या ऐसा नहीं जानते थे कि ये 'दादा' जोड़े हुए को तोड़ते नहीं हैं ? प्रश्नकर्ता : वह जानता हूँ, और टूटे हुए को जोड़ते हैं, वह भी मालूम है। दादाश्री : लोग तो दरार डालने आते हैं । प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कितनी आपत्तियाँ उठाते हैं । अप्रत्यक्ष को तो हम 'लेट गो' कर देते हैं लेकिन प्रत्यक्ष वाले को तो हमने मुँह पर ही सुना दिया था । हमने किसी का भी नहीं चलने दिया । फिर भी, अगर अपना गुनाह होगा तभी चलेगा न! और इसके बावजूद भी यदि सामने वाले का चल जाए, तो हम समझ जाते हैं कि पिछला गुनाह होगा, वह सुलझकर निकल गया । हम सब जहाँ-तहाँ से सुलझाने ही बैठे हैं न ? ! मैं तो जिंदगी भर सुलझाने के लिए ही बैठा हूँ। जो कुछ भी होता है, उसे सुलझाने ही बैठा हूँ !
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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