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________________ [३] कॉमनसेन्स : वेल्डिंग १९९ 'ज्ञानी' होने के बाद मार नहीं पडी। हमें तो 'ज्ञान' होने के बाद, 'यह किसके कर्म का उदय है और किस तरह से आया, इसमें अपना कुछ हिस्सा होगा तभी मारेगा न!' सबकुछ दिखाई देता है न! फिर भी अब मुझे ऐसा कुछ नहीं आता है। अतः मैंने तो पहले मार खा ली है। ऐसे लोग कितने होते हैं ? दुनिया में वे गिनती के ही होंगे न? बेटे और बाप में झगड़ा होने पर, उसकी भी वेल्डिंग कर दी जाए तब उन दोनों के एक हो जाने के बाद फिर वहाँ अपना हिसाब नहीं चलता। प्रश्नकर्ता : इसमें ऐसा हो सकता है कि हम वेल्डिंग करने जाएँ और वे दोनों उस बात से सहमत नहीं हों और बल्कि हम पर ही इल्ज़ाम लगाते हैं कि 'आप ही ऐसे हो, उसका झूठा पक्ष लेते हो और ऐसा करते हो!' । दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। मेरे पास ऐसा कहने जैसा था ही नहीं न! मैं तो, अज्ञान दशा थी तब भी किसी को छेड़ने जैसा रखता ही नहीं था। अरे, इतना भी नहीं रखता था न कि मुझ पर कोई उँगली उठा सके इसलिए ऐसा नहीं होता था। वे तो दोनों उपकार भाव में आ जाते थे उस समय। फिर चाय-नाश्ता वगैरह सभी करवाते। उसके बाद जब वे दोनों वास्तव में एक हो जाते थे, तब उसके बाद परेशानी होती थी। वेल्डिंग, एक कला प्रश्नकर्ता : लेकिन अगर हमें वेल्डिंग करना नहीं आए तो उल्टा भी हो सकता है। दादाश्री : आपमें वह योग्यता नहीं है। मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ था। योग्यता यदि कुछ कच्ची हो तभी ऐसा होता है। हमारे साथ ऐसा नहीं होता है। सभी एक्सेप्ट ही करते हैं। मैं कहूँ कि ऐसा है, तो सभी वह एक्सेप्ट कर लेते हैं। आपका तो अभी कच्ची दशा में है। कितनी ही बार खुद में ऐसे कच्चे गुण होते हैं और सामने वाले को शांत करने जाएँ, सामने वाले का टूटा हुआ जोड़ने जाएँ, तब फिर वह खुद ही उसके साथ टूट जाता है, ये सारी कच्ची दशाएँ। मैं तो टूढूँ ही नहीं। कभी टूटा ही नहीं किसी से। कमी होगी तब तक सामने वाले
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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