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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध चाहिए न !' लेकिन फिर भी उसे नोंध ही जीवित रखती है । वह नौंध करना नहीं छोड़ता। १६५ 'नोंध करने वाले' से 'हम' अलग अभी तक यह तंत है, तो इस तंत की वजह से अभी भी नोंध रहती है। अब यों तो ऐसे आपको तंत नज़र नहीं आता, उसका पता नहीं चलता लेकिन वह नोंध करे न, तब समझना कि तंत है यह । कल आपका कोई अपमान कर गया हो, तब अगर आप उसकी नोंध रखो तो मैं समझ जाता हूँ कि आपको तंत है । यह तंत बहुत जोखिमी चीज़ है। नोंध बिल्कुल भी नहीं रहनी चाहिए । यह सब कहने का भावार्थ यही है कि यों ही कुछ नहीं हो जाता, सबकुछ 'व्यवस्थित' होता है । जहाँ 'व्यवस्थित' है, वहाँ नोंध कैसी ? और नोंध, वह तंत है । I प्रश्नकर्ता : अभ्यास नहीं हो तो भी नोंध हो ही जाती है। दादाश्री : हाँ, ले ली जाती है। लेकिन वह ली जाती है, उसे फिर हमें मिटा देना चाहिए कि 'यह जो नोंध ली गई वह भूल हुई है । ' इतना ही बोलें न, तो छूट जाएगा । 'हम उससे अलग हैं' ऐसा अभिप्राय होना चाहिए। ‘यह जो नोंध ली जा रही है, हम उससे अलग हैं, ' ऐसा अभिप्राय रहना चाहिए तो फिर हम उस मत के नहीं हैं । अपना अभिप्राय वैसा नहीं है। वर्ना अगर कुछ कहें नहीं, तो उसी मत के हो जाएँगे। यह तो अनादिकाल का अभ्यास है, लेकिन यह ज्ञान ऐसा है कि इससे नोंध बिल्कुल भी नहीं रहती । ये नोंध रखने से ही तो सारी परेशानियाँ है ! प्रश्नकर्ता : नोंध का ही अभ्यास किया है हमने । दादाश्री : हाँ, लेकिन वह अभ्यास छोड़ना ही पड़ेगा न! अभी तक तो ‘आप’ ‘चंदूभाई' थे, लेकिन अब 'शुद्धात्मा' बन गए तो फिर अगर वह बदल गया है तो यह भी बदलेगा न ? नोंध तो छोड़नी ही पड़ेगी न? नोंध कब तक चलेगी? हमें किसी भी प्रकार की नोंध नहीं रहती। इतने सब लोगों में, कोई कुछ भी कहे, लेकिन हमें नोंध है ही
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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